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प्रत्येक जीव को जिस प्रकृति का उदय बराबर बिना रुके होता रहता है, उसे ध्रुवोदया कहते हैं। उदययोग्य 122 प्रकृतियों में से निम्नलिखित 27 प्रकृतियां ध्रुवोदया प्रकृतियां हैं -
ज्ञानावरण-5, दर्शनावरण - 4 (चक्षुदर्शन यावत् केवलदर्शन), मोहनीय-1 मिथ्यात्व, नामकर्म—– निर्माण, स्थिर, अस्थिर, अगुरुलघु, शुभ, अशुभ, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श और अन्तराय - पांच । 244. अध्रुवोदया प्रकृति किसे कहते हैं और वे कितनी हैं ?
उ. जिसका उदय अपने उदयकाल के अन्त तक बराबर नहीं रहता है, कभी उदय होता है, कभी नहीं, वे अध्रुवोदया प्रकृतियां हैं। उदययोग्य 122 प्रकृतियां में से ध्रुवोदया की 27 प्रकृतियों को छोड़कर शेष रही हुई 95 प्रकृतियां अध्रुवोदया हैं।
245. ध्रुवसत्ताक प्रकृति किसे कहते हैं और वे कितनी हैं ?
उ. अनादि मिथ्यादृष्टि जीव की जो प्रकृति निरन्तर सत्ता में रहती है, उसे ध्रुवसत्ताक कहते हैं। सत्तायोग्य प्रकृतियां 158 होती हैं। इनमें नामकर्म की 103 प्रकृतियां गिनी गई हैं। सत्तायोग्य 158 प्रकृतियों में से सम्यक्त्व, मिश्र, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, देवगति, देवानुपूर्वी, नरकगति, नरकानुपूर्वी, वैक्रिय शरीर, वैक्रिय अंगोपांग, वैक्रिय- संघातन, वैक्रियवैक्रियबंधन, वैक्रिय - तैजसबंधन, वैक्रिय - कार्मणबंधन, वैक्रिय - तैजसकार्मण - बंधन, तीर्थंकर नामकर्म, चार आयु और आहारक सप्तक (आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, आहारक- संघातन, आहारकआहारक बंधन, आहारक - तैजसबंधन, आहारक - कार्मणबंधन, आहारकतैजस - कार्मणबंधन) और उच्चगोत्र । इन अठाईस प्रकृतियों को छोड़ शेष 130 प्रकृतियां ध्रुवसत्ताक हैं।
246. अध्रुवसत्ताक प्रकृति किसे कहते हैं और वे कितनी हैं ?
उ. मिथ्यात्व दशा में जिन प्रकृति सत्ता का नियम नहीं अर्थात् कभी हो और कभी न हो, ये अध्रुवसत्ताक प्रकृतियां हैं। उपरोक्त कही गई 28 प्रकृतियां अध्रुवसत्ताक हैं।
247. कर्म प्रकृतियों में सर्वघातिनी, देशघातिनी और अघातिनी प्रकृतियां कितनीकितनी हैं ?
उ. सर्वघातिनी- - आत्मा के गुणों को पूरी तरह घात करने वाली प्रकृतियां सर्वघातिनी प्रकृतियां हैं। ये बीस हैं
कर्म-दर्शन 53