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211.
चार घाति कर्मों का क्षयोपशम निष्पन्नकौन ?
उ. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय इन तीन कर्मों का क्षयोपशम निष्पन्न - छह में जीव | नौ में दो — जीव, निर्जरा ।
मोहनीय कर्म का क्षयोपशम निष्पन्न छह में जीव । नौ में 3 – जीव, संवर, निर्जरा |
-छह द्रव्य में कौन ? नौ तत्त्व में
212. चार घाति कर्मों का क्षयोपशम निष्पन्न किस-किस गुणस्थान तक ? उ. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय इन तीन कर्मों का क्षयोपशम निष्पन्न — पहले से बारहवें गुणस्थान तक । मोहनीय कर्म के दो भेद - दर्शन मोहनीय, चारित्र मोहनीय दर्शन मोहनीय का क्षयोपशम निष्पन्न — पहले से सातवें गुणस्थान तक और चारित्र मोहनीय का क्षयोपशम निष्पन्न — पहले से दसवें गुणस्थान तक।
213.
उपशम और क्षयोपशम में क्या अन्तर है ?
उ. उपशम और क्षयोपशम में दो अन्तर हैं
(1) उपशम में उदय प्राप्त कषाय क्षीण हो जाता है तथा शेष कषाय का उदय रहता है। क्षयोपशम में क्षय और उपशम होने पर भी सूक्ष्म उदय यानी प्रदेशोदय चालू रहता है।
(2) उपशम में विद्यमान कर्म का वेदन नहीं होता। क्षयोपशम में विद्यमान कर्म का प्रदेशोदय में वेदन होता है, विपाकोदय में वेदन नहीं होता है। (3) क्षयोपशम में प्रदेशोदय रहता है। जबकि उपशम में प्रदेशोदय नहीं रहता है।
214.
क्षय किसे कहते हैं?
उ. कर्मों का समूल रूप से नाश हो जाना क्षय है। क्षय से होने वाली आत्मा की अवस्था को क्षायिक भाव कहते हैं ।
215. क्षायिक भाव के कितने प्रकार हैं?
उ. क्षायिक भाव के आठ प्रकार हैं—
ज्ञानावरणीय
दर्शनावरणीय
वेदनीय
मोहनीय
आयुष्य
केवलज्ञान
केवलदर्शन
आत्मिक सुख
क्षायिक सम्यक्त्व
अटल अवगाहन
कर्म-दर्शन 47