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88. क्या पहले कर्म और बाद में जीव, यह बात सही है?
उ. नहीं। कर्म का कर्ता जीव है। जीव के अभाव में कर्म कौन करेगा? 89. क्या पहले जीव और बाद में कर्म, यह बात सही है?
उ. नहीं। कर्मों के बिना जीव कहाँ रहा, मुक्त जीव पुनः संसार में नहीं आता। 90. क्या जीव और कर्म की उत्पत्ति युगपत् (साथ-साथ) होती है या स्वतंत्र? उ. जीव और कर्म की उत्पत्ति युगपत् नहीं होती। युगपत् होने पर ‘यह जीव
कर्ता है' और 'यह ज्ञानावरणीय आदि कर्म उसका कार्य है'—ऐसा व्यपदेश
नहीं हो सकता। 91. क्या सांसारिक जीव कर्मरहित है? उ. नहीं। यदि जीव कर्मरहित है तो भवभ्रमण कैसे होगा, कौन करेगा? यदि
जीव कर्मरहित हो तो करणी (तपस्या) किसलिए करेगा? 92. जीव और कर्म का मिलाप कैसे होता है? उ. अपश्चानुपूर्वीतया-न पहले और न पीछे। अनादिकाल से जीव और कर्म
का सम्बन्ध चला रहा है। कर्मबद्ध आत्मा ही बार-बार कर्मों से बंधती है। 93. आत्मा मूर्त है या अमूर्त?
उ. अमूर्त। 94. कर्म मूर्त है या अमूर्त? उ. मूर्त। 95. आत्मा अमूर्त है और कर्म मूर्त है फिर अमूर्त आत्मा मूर्त कर्मों का कर्ता
कैसे हो सकता है? उ. आत्मा अपने भावों का कर्ता है। उदय में आये हुए कर्मों का अनुभव करता
हुआ जीव जैसे भाव परिणाम करता है वह उन भावों का कर्ता है। कर्म के उदय के बिना जीव के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम भाव हो ही नहीं सकते, क्योंकि यदि कर्म ही न हो तो उदय आदि किसका हो? अतः उदय आदि चारों भाव कर्मकृत हैं। प्रश्न हो सकता है कि यदि ये भाव कर्मकृत हैं तो जीव उनका कर्ता कैसे? इसका समाधान यह कि भाव कर्म के निमित्त से उत्पन्न है और कर्म भावों के निमित्त से। जीव के भाव कर्मों के उपादान कारण नहीं हैं न कर्म भावों के उपादान कारण हैं। स्वभाव को करता हुआ जीव अपने ही भावों का कर्ता है निश्चय ही पुद्गल कर्मों का नहीं! जीव के भाव कर्म के निमित्त से नये कर्मों का बंध कर लेते हैं।
कर्म-दर्शन 27