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83. आत्मा के साथ बंधने वाले कर्म कितने प्रदेशी होते हैं?
उ. अनन्त प्रदेशी। 84. कर्म और जीव का सम्बन्ध कब से हैं? उ. आत्मा के साथ कर्मों का अनादि सम्बन्ध है। संसारी आत्मा अनादिकाल
से कर्मों से बंधी हुई है। यद्यपि प्रत्येक बंधने वाले कर्म की एक काल मर्यादा होती है। पहले वाले कर्म टूटते हैं नये बंधते रहते हैं। व्यक्ति रूप से
कोई भी कर्म अनादि नहीं हो सकता, यह अनादि सम्बन्ध प्रवाह रूप से है। 85. क्या जीव और कर्म का सम्बन्ध जीव और आकाश की तरह अनादि
अनन्त है या स्वर्ण और उपल की तरह अनादि सान्त है? उ. जीव और कर्म में दोनों प्रकार का सम्बन्ध है। जैसे अभव्य प्राणी में जीव
और कर्म का सम्बन्ध जीव और आकाश की तरह अनादि अनन्त है और भव्य प्राणी में जीव और कर्म सम्बन्ध स्वर्ण और उपल की तरह अनादि
सान्त है। 86. जो अनादि होता है वह अनन्त होता है। अगर हम आत्मा एवं कर्म के
सम्बन्ध को अनादि मानें तो उसका अन्त कैसे संभव है? उ. अनादि का अन्त नहीं होता, यह एक सामुदायिक नियम है और जाति से
सम्बन्ध रखता है। व्यक्ति विशेष पर यह लागू नहीं भी होता है। प्राग्भाव अनादि है पर उसका अन्त होता है। स्वर्ण और मिट्टी का, घी और दूध का सम्बन्ध अनादि है फिर भी वे पृथक् होते हैं ऐसे ही आत्मा और कर्म के सम्बन्ध का अन्त होता है। क्योंकि आत्मा और कर्म का सम्बन्ध प्रवाह रूप से अनादि है व्यक्ति रूप से नहीं। प्रत्येक कर्म एक काल मर्यादा के साथ बंधता है और उसके बाद वह आत्मा से अलग हो जाता है। आत्मा जब अपने पुरुषार्थ से कर्म आने के द्वारों को निरुद्ध कर देता है तथा ध्यान जप आदि से पूर्व अर्जित कर्मों की निर्जरा कर देता है तो एक समय ऐसा आता है कि आत्मा कर्म से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार अनादि कर्मबद्ध
आत्मा कर्ममुक्त बन सकती है। 87. क्या कभी कर्म और आत्मा का संबंध टूट सकता है या नहीं? उ. जिस प्रकार तिल और तेल, फूल और खुशबू, सोना और मिट्टी, दही और
घी आपस में मिले हुए हैं वैसे ही आत्मा और कर्म आपस में मिले हुए हैं। जिस प्रकार कोल्हू के द्वारा तिल और तेल अलग-अलग हो जाते हैं, अग्नि के द्वारा सोना और मिट्टी पृथक् हो जाते हैं, दही और घी मथनी के द्वारा अलग हो जाते हैं; वैसे ही आत्मा और कर्म तपस्या के द्वारा अलग हो जाते हैं।
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