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73. जीव और पुद्गल पुण्य है या पाप? उ. जीव और पुद्गल न पुण्य है और न पाप। जीव और पुद्गलों का संयोग
होने पर जो स्थिति बनती है वह पुण्य या पाप है। 74. संसार की समस्त आत्माओं को कितने वर्गों में बांटा जा सकता है? उ. संसार की समस्त आत्माओं को कर्मों के उदय, क्षयोपशम और क्षय के
आधार पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। आत्मा मूलत: एक ही है। उपरोक्त तीन वर्ग सापेक्ष दृष्टि से किये गये हैं।
75. जीव की विविधता का हेतु क्या है? उ. जीव की विविधता का हेतु है—कर्म।
76. कर्म रूपी है या अरूपी? उ. कर्म रूपी है।
77. कर्म जीव है या अजीव?
उ. अजीव। 78. कर्म सावध है या निरवद्य?
उ. दोनों नहीं। क्योंकि कर्म तो अजीव है। 79. कर्म हेय है या उपादेय?
उ. हेय। 80. कर्म चतु:स्पर्शी है या अष्टस्पर्शी?
उ. कर्म चतुःस्पर्शी है। 81. कर्म सकारण होते हैं या निष्कारण?
उ. कर्म सकारण होते हैं, निष्कारण नहीं। 82. कर्म के प्रदेश अधिक हैं या आत्मा के प्रदेश अधिक हैं? उ. कर्म के प्रदेश। एक जीव की अपेक्षा आत्मप्रदेश असंख्यात है। जीव संख्या
में अनन्त हैं। अत: सब जीवों की अपेक्षा आत्मा के प्रदेश भी अनन्त हो जाते हैं। प्रत्येक संसारी जीव के एक-एक आत्म प्रदेश पर अनन्त-अनन्त कर्म वर्गणाएं चिपकी हुई हैं। एक-एक कर्म वर्गणा में अनन्त-अनन्त प्रदेश है अत: कर्म प्रदेश अधिक हैं।
कर्म-दर्शन 25