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176. क्या एक, दो, तीन, पांच, छः कर्म किसी के होते हैं? उ. किसी के नहीं ।
177. सबसे कम कौनसे कर्म के जीव हैं ? उ. मोहनीय कर्म के ।
178. सबसे अधिक कौनसे कर्म के जीव हैं? उ. चार अघाति कर्म के।
179.
श्रावक के एक साथ कितने कर्मों का बंध होता है ?
उ. श्रावक के एक साथ सात तथा आठ कर्मों का बंध हो सकता है। जब आयुष्य का बंध होता है तो आठ कर्मों का अन्यथा सात कर्म का निरन्तर बंध होता रहता है।
180. बंध सप्रदेशी है या अप्रदेशी ?
उ. सप्रदेशी ।
181. ज्ञानावरणीय कर्म को पहला स्थान क्यों दिया गया है?
उ. ज्ञान के द्वारा कर्म विषय शास्त्र या अन्य शास्त्र का बोध किया जा सकता है। जब कोई लब्धि प्राप्त होती है तो जीव ज्ञानोपयोगयुक्त ही होता है। मोक्ष की प्राप्ति भी ज्ञानोपयोग के समय में ही होती है अतः ज्ञान के आवरणभूत कर्म को पहला स्थान दिया गया है।
182. दर्शनावरणीय कर्म को दूसरा स्थान क्यों दिया गया है ?
उसे
उ. दर्शन की प्रवृत्ति मुक्त जीवों को ज्ञान के अनन्तर होती है। अतः स्थान दिया गया है।
दूसरा
183. वेदनीय कर्म का स्थान दर्शनावरणीय कर्म के बाद क्यों रखा गया ? उ. दर्शन से सामान्य का बोध होता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय के उदय से जीव अंधा, गूंगा, बहरा और बुद्धिहीन होता है, इसके कारण वह दु:खी होता है। इन दोनों कर्मों के विशिष्ट क्षयोपशम से सुख की अनुभूति होती है । यह सुख-दुःख का अनुभव वेदनीय कर्म के उदय से होता है, अतः वेदनीय कर्म का तीसरा स्थान है।
184. वेदनीय कर्म के बाद मोह कर्म का स्थान क्यों ?
उ. वेदनीय कर्म के अनन्तर मोहनीय कर्म को रखने का हेतु यह है कि सुख दुःख का वेदन करते समय अवश्य राग-द्वेष का उदय होता है जिसका संबंध मोह कर्म के साथ है।
42 कर्म-दर्शन