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छोड़कर) बंध वहां भी होता है। जीव के साथ अव्रत कषाय आदि रहते ही हैं तथा तैजस, कार्मण शरीर भी साथ में होते हैं। वहाँ अध्यवसायों से कर्मों का बंध होता है। वैसे कर्मों का बंध तो कार्मण शरीर के ही होता है।
अन्तराल गति में स्थूल शरीर नहीं होता, स्थूल योग नहीं रहता, फिर कर्मबंध कैसे व किसके होता है ?
उ. अन्तराल गति दो प्रकार की होती है— ऋजु और वक्र । अन्तराल गति में स्थूल शरीर तो नहीं होता। योगजन्य प्रवाह (धक्का) रहता है। वक्र गति में कार्मण काययोग की चंचलता रहती है। अव्रत व कषाय तो जीव के साथ अन्तराल गति में भी विद्यमान रहते हैं। कर्म पुद्गलों को आकर्षित करने के लिए तो इतना काफी है। कर्मों का बंधन सर्वदा कार्मण शरीर के ही होता है। वह वहाँ मोजूद रहता है।
134. कर्म के क्या कार्य हैं?
उ. ज्ञानावरणीय
दर्शनावरणीय
वेदनीय
मोहनीय
आयुष्य
आवरण
विकार
अवरोध
शुभाशुभ का संयोग
नाम
गोत्र
अन्तराय
135. कर्म का आत्मा पर किस रूप में असर होता है ?
उ. निम्नोक्त चार प्रकार से कर्मों का असर आत्मा पर होता है—
मूल गुणों को आच्छादित करना । मूल गुणों को विकृत करना ।
1. आवरण 2. अवरोध
3. विकार
4. शुभाशुभ संयोग
34 कर्म-दर्शन
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ज्ञान प्राप्ति में बाधा
दर्शन प्राप्ति में बाधा
सुख व दुःख की अनुभूति मूढ़ता की उत्पत्ति
भव स्थिति
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शरीर निर्माण की प्रकृष्टता व निकृष्टता अच्छी व बुरी दृष्टि से देखा जाना आत्म-शक्ति की उपलब्धि में बाधक ।
के
आत्मा
आत्मा के
आत्मा के विकास में बाधा डालना ।
आत्मा के
और अशुभ शुभ
दर्शनावरणीय ।
बनना ।
ज्ञानावरणीय
आयुष्य, अन्तराय।
मोहनीय |
वेदनीय, आयुष्य, नाम,
संयोग में निमित्त
गोत्र ।