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121.
आत्मा पर लगे कर्म दिखाई नहीं देते फिर कैसे मानें कि कर्म हैं? उ. आंखों की देखने की शक्ति सीमित होती है। निकट पड़ी वस्तु को भी आंखें देख नहीं पाती। जैसे आंख में अंजे हुए काजल को आंख स्वयं नहीं देख सकती। चार अंगुल की दूरी पर स्थित कान को नहीं देख सकती। सूर्य के प्रकाश में स्थित तारों को देख नहीं सकती। इसी प्रकार कर्म का अस्तित्व होने पर भी कर्म परमाणु आंख से दिखाई नहीं देते। केवलज्ञानी, सर्वज्ञ प्रभु ही आत्मा पर लगे कर्म परमाणुओं को देख सकते हैं।
122.
क्या आत्मा और कर्म सहगामी हैं?
उ. जब तक आत्मा कर्ममुक्त नहीं होती तब तक आत्मा और कर्म साथ-साथ रहते हैं।
उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि - पराधीन आत्मा द्विपद, चतुष्पद, खेत, घर, धन, धान्य, वस्त्र आदि सब कुछ छोड़कर अपने किये हुए कर्मों को साथ लेकर सुखद या दुःखद परभव में जाता है।
123. कर्म के दो प्रकार कौनसे हैं ?
उ. द्रव्यकर्म और भावकर्म ।
124. द्रव्यकर्म और भावकर्म क्या हैं?
उ. जब तक कर्म बंधे रहते हैं तब तक द्रव्य कर्म कहलाते हैं और उदयावस्था को प्राप्त कर्म भाव कर्म कहलाते हैं। इनमें निमित्त नैमित्तिक भाव है। भाव कर्म से द्रव्य कर्म का संग्रह एवं द्रव्य कर्म के उदय से भाव कर्म तीव्र होता है। भाव कर्म जीवात्मा के परिणाम होने से जीव एवं द्रव्य कर्म पौद्गलिक होने से अजीव है।
125. भावकर्म बंध के कितने कारण हैं?
उ. भावकर्म बंध के पांच कारण हैं— पांच आश्रव । संक्षिप्तिकरण करें तो दो कारण होते हैं— कषाय और योग । इन दोनों को भी और अधिक संक्षिप्त कहा जाए तो कषाय ही कर्मबंध का कारण है।
126. द्रव्य कर्मों का कितने भागों में वर्गीकरण किया जाता है?
उ. चार भागों में
प्रदेशबंध ।
— 1. प्रकृतिबंध, 2. स्थितिबंध, 3. अनुभाग बंध और 4.
127.
आठ कर्मों का बंध एक साथ ही होता है या अलग-अलग भी होता है ? उ. जैन दर्शन के अनुसार कम से कम एक कर्म का और अधिक से अधिक आठों कर्मों का बंध एक साथ हो सकता है।
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