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153. कायस्पर्श से प्राणीवध होने पर क्या कर्म का एक जैसा बंध होता है? उ. कर्म का बंध व्यक्ति के कषाय की तीव्रता-मंदता की भावधारा के अनुरूप
होता है। जैसे(1) शैलेशी दशा प्राप्त मुनि के कर्मबंध नहीं होता। (2) मन, वचन एवं काया की प्रवृत्ति वाले वीतराग के दो समय की
स्थिति वाला सातवेदनीय कर्म का बंध होता है। (3) अप्रमत्त मुनि के जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टत: बारह मुहूर्त की
स्थिति का कर्म बंध होता है। विधिपूर्वक प्रवृत्ति करने वाले प्रमत्त मुनि के जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टत: आठ वर्ष की स्थिति वाला कर्मबंध होता है। वे वर्तमान में वेदन कर क्षीण कर देते हैं।
(आयारो अध्ययन 5 उद्देशक 4) 154. क्या कर्म के अशुभ फल को रोका जा सकता है? उ. जप, ध्यान आदि के द्वारा अशुभ फल को रोका जा सकता है। जपादि
से कर्मों की निर्जरा होती है। जब कर्मों का निर्जरण हो जाता है तब फल देने की बात स्वतः समाप्त हो जाती है। जप आदि के समय तीव्र शुभ अध्यवसायों से भी उस समय बंधने वाली शुभ प्रकृतियों के साथ पहले बंधी हुई अशुभ प्रकृतियां शुभ में संक्रमित हो जाती हैं। ऐसा होने से अशुभ
का फल जीव को नहीं मिलता। 155. शुभ कर्म को कैसे तोड़ा जा सकता है? उ. शुभ कर्म को तोड़ने का वैसे कोई प्रशस्त साधन नहीं है। केवली समुद्घात
के समय ही शुभ कर्म तोड़े जाते हैं। यदि पुण्य भोगने में आसक्ति नहीं रहती, तो पुण्य भोगने में पाप का बंध नहीं होता। अशुभ प्रवृत्ति से पुण्य का क्षय तीव्रता से होता है, पर उसी के साथ पाप का बंध भी उतनी ही तीव्रता
से होता है, अतः आत्मा हलकी नहीं हो पाती। 156. कर्मों के सादि, अनादि, सांत आदि कितने विकल्प बनते हैं? उ. कर्मों के सादि, आदि की दृष्टि से चार विकल्प बनते हैं
* पहला विकल्प—'अनादि अनन्त'! अभव्य जीव, जो कभी मुक्त नहीं ___ होंगे.उनके साथ कर्मों का अनादि-अनन्त संबंध है। * दूसरा विकल्प-सादि सान्त! एक जीव ने सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया। दर्शन मोह का उपशम कर उपशम श्रेणी ली। ग्यारहवें गुणस्थान में एक
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