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बीकानेर के व्याख्यान ]
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का स्वरूप स्पष्ट रूप से देख सकोगे। इस बात पर मनन करो और इसे हृदय में उतार लो तो शांतिनाथ हृदय में ही प्रकट हो जाएँगे। प्राचीन ऋषियों ने कहा है
देहो देवालयः प्रोक्तो जीवो देवः सनातनः ।
त्यदेजज्ञाननिर्माल्न, सोऽहं भावेन पूजयेत् ।। यह देह देवालय है। इसमें अाज का नहीं सनातन का, कृत्रिम नहीं अकृत्रिम, जीव परमेश्वर है।
तुम्हारी देह अगर मन्दिर है तो दूसरे जीवों की देह भी भन्दिर है या नहीं?
यदि केवल अपनी ही देह को मन्दिर माना, दूसरे की देह को मन्दिर नहीं माना तो तुम पक्षपात में पड़े होने के कारण ईश्वर को नहीं जान सकते । ईश्वर ज्ञानस्वरूप, सर्वव्यापी और सब की शन्ति चाहने वाला है। अगर आप भी सब की शान्ति चाहते हैं, सब की देह को देवालय मानते हैं तो आपकी देह भी देवालय है: अन्यथा नहीं।
जिस मकान को देवालय मान लिया. उस मकान के इंट पत्थर कोई विवेकी ग्वोदना चाहेगा ? 'नहीं !"
अगर कोई खोदता है तो कहा जायगा कि इसने देवालय की प्रासातना की । लेकिन जब सभी जीवों के शरीर को देवालय मान लिया तो फिर किसी के शरीर को तोड़ना-फोड़ना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com