________________
मगल विधान तीन लोक का नाथ ज्ञान सम्राट सिद्ध पद का स्वामी ।
ज्ञानानद स्वभावी ज्ञायक तू ही है अन्तर्यामी ।। श्री अरिहंत शरण मे जाऊँ सिद्ध शरण मे मैं जाऊँ । साधु शरण मे जाऊ केवलि कथित धर्मशरणा जाऊँ।।५।। ॐ ह्रीं नमो अर्हते स्वाहा पुष्पांजलि क्षिपामि ।
मंगल विधान णमोकार का मन्त्र शाश्वत इसकी महिमा अपरम्पार । पाप ताप सताप क्लेश हर्ता भवभय नाशक सुखकार ॥१॥ सर्व अमगल का हर्ता है सर्वश्रेष्ठ है मन्त्र पवित्र । पाप पुण्य आश्रव का नाशक सवरमय निर्जरा विचित्र ॥२॥ बन्ध विनाशक मोक्ष प्रकाशक वीतरागपद दाता पित्र । श्री पचपरमेष्ठी प्रभु के झलक रहे हैं इसमे चित्र ॥३॥ इसके उच्चारण से होता विषय कषायो का परिहार । इसके उच्चारण से होता अन्तर मन निर्मल अविकार ।।४।। इसके ध्यान मात्र से होता अतर द्वन्दों का प्रतिकार । इसके ध्यान मात्र से होता बाह्यान्तर आनन्द अपार ॥५।। णमोकार है मन्त्र श्रेष्ठतम सर्व पाप नाशनहारी । सर्व मंगलो में पहला मगल पढते ही सुखकारी ॥६॥ यह पवित्र अपवित्र दशा सुस्थिति दुस्थिति मे हितकारी ।। निमिष मात्र मे जपते ही होते विलीन पातक भारी ॥७॥ सर्व विघ्न बाधा नाशक है सर्व सकटो का हर्ता ।। अजर अमर अविकल अविकारी अविनाशी सुख का कर्ता ॥८॥ कर्माष्टक का चक्र मिटाता, मोक्ष लक्ष्मी का दाता । धर्मचक्र से सिद्धचक्र पाता जो ओम् नम ध्याता ।।९।। ओम् शब्द मे गर्भित पाँचों परमेष्ठी निज गुण धारी । जो भी ध्याते बन जाते परमात्मा पूर्ण ज्ञान धारी ।।१०॥ जय जय जयति पंच परमेष्ठी जय जय णमोकार जिन मन । भव बन्धन से छुटकारे का यही एक है मन्त्र स्वतत्र।।११॥