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प्रथम खण्ड/ प्रथम पुस्तक
भावार्थ- शंकाकार न क्रमरूप परिणमन स्वीकार करता है और न उस परिणमन में विसदृशपना स्वीकार करता है। उसके विचार में पदार्थ कूटस्थ वह का वह और वैसे का वैसा ही है।
समाधान १७७ से १८० तक
तन्न यतः
प्रत्यक्षादनुभवविषयात्तथानुमानाद्वा ।
स तथेति च नित्यस्य, न तथेत्यनित्यस्य प्रतीतत्त्वात् ॥ १७७ ॥
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अर्थ - उपर्युक्त शंका ठीक नहीं है क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण से अपने अनुभव से अथवा अनुमान प्रमाण से वह उसी प्रकार है, इस प्रकार नित्य की और वह उस प्रकार नहीं है इस प्रकार अनित्य की भी प्रतीति होती है।
अयमर्थः परिणामि द्रव्यं नियमाद्यथा स्वतः सिद्धम् ।
प्रति समयं परिणमते पुनःपुनर्वा यथा प्रदीपशिखा ॥ १७८ ॥
अर्थ - उपर्युक्त कथन का यह अर्थ है कि द्रव्य जिस प्रकार स्वतः सिद्ध है उसी प्रकार नियम से परिणामी भी है। जिस प्रकार दीपक की शिखा (लौ) बार-बार परिणमन करती है, उसी प्रकार प्रतिसमय द्रव्य भी परिणमन करता है । इदमरित पूर्वपूर्वभावविनाशेन नश्यतोऽशस्य ।
यदि वा तदुत्तरोत्तरभावोत्पादेन जायमानस्य ॥ १७२ ॥
अर्थ- पहले पहले भाव का विनाश होने से किसी अंश का ( पर्याय का ) नाश होने से और नवीन नवीन भाव के उत्पन्न होने से किसी अंश (पर्याय) के पैदा होने से यह परिणमन होता है।
तदिदं यथा स जीवो देवो मनुजाद्भवन्नथाप्यन्यः । कथमन्यथात्वभावं न लभेत स गोरसोऽपि नयात् ॥ १८० ॥
अर्थ- वह पूर्व-पूर्व भाव का विनाश और उत्तर-उत्तर भाव का उत्पाद इस प्रकार होता है-जैसे जो जीव पहले मनुष्य पर्याय में था, वही जीव मरकर देव पर्याय में चला गया। मनुष्य जीव से देवजीव कथंचित भिन्न है। जिस प्रकार दूध से दही कथंचित् अन्यथा भाव को प्राप्त होता है उसी प्रकार यह भी कथंचित् अन्यथा भाव को क्यों नहीं प्राप्त होगा ? अवश्य ही होगा।
शंका १८१ - १८२
ननु चैवं सत्यसदपि किञ्चिद्वा जायते सदेव यथा |
सदपि विनश्यत्यसदिव सदृशासदृशत्वदर्शनादिति चेन् ॥ १८१ ॥
अर्थ - शंका- इस प्रकार की भिन्नता स्वीकार करने से मालूम होता है कि सत् की तरह कुछ असत् भी पैदा हो जाता है और असत् की तरह कुछ सत् पदार्थ भी विनष्ट हो जाता है। समानता और असमानता के देखने से ऐसा प्रतीत भी होता है।
शंका चालू
सदृशोत्पादो हि यथा स्यादुष्णः परिणमन् यथा वन्हिः ।
स्यादित्यसदृशजन्मा हरितात्पीतं यथा रसालफलम् ॥ १८२ ॥
अर्थ-किसी-किसी का समान उत्पाद होता है और किसी-किसी का असमान उत्पाद होता है। अग्नि का जो उष्ण रूप परिणमन होता है वह उसका समान उत्पाद है और जो कच्चा आम पकने पर हरे से पीला हो जाता है वह असमान (विजातीय) उत्पाद है। इस प्रकार कुछ असत् का उत्पाद होता है कुछ सत् का नाश होता है क्या ?
भावार्थ- वस्तु के प्रति समय होनेवाले परिणमन को देखकर वस्तु को ही उत्पन्न और विनष्ट समझने वालों की यह शंका है।