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द्वितीय खण्ड/छठी पुस्तक
प्रश्न २७४ - अन्वय व्यतिरेक किस को कहते हैं?
उत्तर - जिसके होने पर जो हो- उसको अन्वय कहते हैं और जिसके नहीं होने पर जो न हो - उसको व्यतिरेक कहते हैं जैसे जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व है वहाँ-वहाँ दर्शनमोह का अनुदय है - यह अन्वय है और जहाँ-जहाँ दर्शनमोह का अनुदय नहीं है - वहाँ-वहाँ सम्यक्त्व भी नहीं है -- यह व्यतिरेक है।
प्रश्न २७५ - व्याप्ति के जानने से क्या लाभ है ?
उत्तर – इससे पदार्थों के सहचर्य सम्बन्ध का पता चल जाता है कि किन पदार्थों की किन पदार्थों के साथ सहचरता है या नहीं। ये अविनाभाव की कसौटी है। इससे परख कर देख लेते हैं। इससे एक पदार्थ की अस्ति या नास्ति से दूसरे पदार्थ की अस्ति या नास्ति का ज्ञान कर लिया जाता है।
नोट - न्यायशास्त्र में अनुमान प्रयोग में साधन के सद्भाव में साध्य के सद्भाव और साध्य के अभाव में साधन के अभाव को अविनाभाव या व्याप्ति कहते हैं। वहाँ समव्याप्ति या विषमव्याप्ति नहीं होती। च्याप्ति होती है या अव्याप्ति होती है। यह विषय उससे भिन्न जाति का है।यह आध्यात्मिक विषय है। वहाँ धूम और अग्नि की व्याप्ति है। यहाँ धूम
ग्नि की विषम व्याप्ति है। इसलिये इस विषय को उस न्याय के ढङ्ग से समझाने का प्रयत्न न करें किन्तु जिस ढङ्ग से यहाँ निरूपण किया गया है - उसी डङ्ग से समझें तो कल्याण होगा। वहाँ उद्देश्य साधन द्वारा साध्य के सिद्ध करने का है और यहाँ उद्देश्य एक पदार्थ के अस्तित्व या नास्तित्त्व से दूसरे पदार्थ के अस्तित्त्व या ना करने का है।
(४) फुटकर (Miscellaneous) प्रश्न २७६ - उपयोगसंक्रान्ति के पर्यायवाची शब्द बताओ? उत्तर - उपयोगसंक्रान्ति, पुनवृत्ति, क्रमवर्तित्व, विकल्प, ज्ञप्ति परिवर्तन। उपयोग का बदलना। प्रश्न २७७ - क्षायोपशामिक ज्ञान और क्षायिक ज्ञान में क्या अन्तर है?
उत्तर -क्षायोपशमिक ज्ञान में उपयोग संक्रान्ति होती ही है। वह क्रमवर्ती ही है। क्षायिक ज्ञान में उपयोग संक्रान्ति नहीं ही होती है। वह अक्रमवर्ती ही है।
प्रश्न २७८ - गुण क्या-क्या है?
उत्तर - सम्यक्त्व की उत्पत्ति होना, वृद्धि होना, निर्जरा होना, संवर होना, संवर निर्जरा की वृद्धि होना, पुण्य बन्धना, पुण्य का उत्पकर्षण होना, पाप का अपकर्षण होना, पाप का पुण्य रूप संक्रमण [बदलना } गुण है।
प्रश्न २७९ - दोष क्या-क्या है ?
उत्तर - सम्यक्त्व का सर्वथा नाश या आंशिक हानि होना, संवर निर्भरा का सर्वथा नाश या हानि होना, पाप का बन्धना, पाप का उत्पकर्षण होना, पुण्य का अपकर्षण होना, पुण्यप्रकृति का पाप प्रकृति में बदलना दोष है।
प्रश्न २८० - राग और उपयोग में किन कारणों से भिनता है ?
उत्तर - राग औदयिक भाव है। उपयोग क्षयोपशामिक भाव है। राग चारित्रगुण की विपरीत पर्याय है। उपयोग ज्ञानगुण की क्षयोपशम रूप पर्याय है। राग में घारित्रमोह का उदय निमित्त कारण है और उपयोग में ज्ञानावरण का क्षयोपशम निमित्त कारण है।
राग का अनुभव मलिनता रूप है - ज्ञान का अनुभव स्वभाव रूप [ जानने रूप] है। राग से बन्ध ही होता है। उपयोग से अन्य नहीं ही होता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में दोनों स्वतंत्र रूप से पाये जाते है अर्थात हीनाधिक पाये जाते हैं या ज्ञान तो पाया जाता है पर राग नहीं पाया जाता। ये दृष्टान्त इनकी भिन्नता को सिद्ध करते हैं।