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ग्रन्थराज श्री पञ्चाध्यायी
पाया है न पा सकता है ऐसा ही अनादि अनन्त मार्ग है। वस्तु स्वभाव है। कोई क्या करे। अर्थ इसका यह है कि जब जीव में यथार्थ बोध की 'स्वकाल' में योग्यता होती है तो सामने अपने कारण से वस्तु स्वभाव नियमानुसार ज्ञानी गुरु होते हैं । तब उन पर आरोप आता है कि गुरु देव की कृपा से वस्तु मिली । निश्चय से आत्मा का गुरु आत्मा ही है। जगत् में सत् का परिज्ञान हुए बिना किसी की पर में एकत्वबुद्धि, पर में कर्तृत्व भोक्तृत्व का भाव नहीं मिटता तथा सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं होती और सत् का परिज्ञान करने के लिये इससे बढ़िया ग्रन्थ जगत् में आज उपलब्ध नहीं है। यह ग्रन्थराज है। यदि मोक्षमार्गी बनने की इच्छा है तो इसका रुचिपूर्वक अभ्यास करिये । यह नॉवल की तरह पढ़ने का नहीं है। कोर्स ग्रन्थ है। इसका बार-बार मंथन कीजिये, विचार कीजिये। सद्गुरुदेव का समागम कीजिए तो कुछ ही दिनों में का स्तर आपको लगेगा। सद्गुरु देव की जय । ओं शान्ति ।
कण्ठस्थ करने योग्य प्रश्नोत्तर
प्रमाण श्लोक नं.
प्रश्न १ उत्तर
प्रश्न २ उत्तर
प्रश्न ३ उत्तर
प्रश्न ४
उत्तर
प्रश्न ५
उत्तर
प्रश्न ६
उत्तर
प्रश्न ७
उत्तर
प्रश्न ८ उत्तर
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द्रव्यत्व अधिकार ( १ )
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शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से (निश्चय दृष्टि से अभेद दृष्टि से ) द्रव्य का क्या लक्षण है ? जो सत् स्वरूप, स्वतः सिद्ध, अनादि अनन्त, स्वसहाय और निर्विकल्प (अखण्डित ) है वह द्रव्य है । (८, ७४७ प्रथम पंक्ति, ७५० प्रथम पंक्ति ) पर्यायार्थिक नय से ( व्यवहार दृष्टि से भेद दृष्टि से ) द्रव्य का क्या लक्षण है ? (१) गुणपर्यायवद्द्द्द्रव्यं ( २ ) गुणपर्ययसमुदायो द्रव्यं ( ३ ) गुणसमुदायो द्रव्यं ( ४ ) समगुणपर्यायो द्रव्यं (५) उत्पादव्ययश्रव्ययुक्तंसत् - सत् द्रव्य लक्षणं । ये सब पर्यायवाची हैं। सब गुण और त्रिकालवर्ती सब पर्यायों का तन्मय पिंड द्रव्य है यह इसका अर्थ है। (७२, ७३, ८६, ७४७ दूसरी पंक्ति ७४९ )
प्रमाण से ( भेदाभेद दृष्टि से ) द्रव्य का क्या लक्षण है ?
वही द्रव्य, उत्पादव्ययीव्ययुक्त है तथा वही द्रव्य, अखण्डसत् ( २६१ प्रथम पंक्ति, ७४८, ७५० दूसरी पंक्ति )
जो द्रव्य, गुणपर्यायवाला है अनिर्वचनीय है।
द्रव्य के नामान्तर बताओ ?
द्रव्य, तत्व, सत्व, सत्ता, सत्, अन्वय, वस्तु, अर्थ, पदार्थ, सामान्य, धर्मी, देश,
विधि | ( १४३ )
समवाय, समुदाय,
स्वतः सिद्ध किसे कहते हैं ?
वस्तु पर से सिद्ध नहीं है। ईश्वरादि की बनाई हुई नहीं है । स्वतः स्वभाव से स्वयंसिद्ध है।
अनादि अनन्त किसे कहते हैं ?
( ८ )
वस्तु क्षणिक नहीं है। सत् की उत्पत्ति नहीं है, न सत् का नाश है, वह अनादि से है और अनन्त काल तक रहेगी।
( ८ )
स्वसहाय किसे कहते हैं ?
पदार्थ पदार्थान्तर के सम्बन्ध से पदार्थ नहीं है। निमित्त या अन्य पदार्थ से न टिकता है और न परिणमन करता है। अनादि अनन्त स्वभाव या विभाव रूप से स्वयं अपने परिणमन स्वभाव के कारण परिणमता है। कभी किसी पदार्थ का अंश न स्वयं अपने में लेता है और न अपना कोई अंश दूसरे को देता है।
(८)
अनादि अनन्त और स्वसहाय में क्या अन्तर है ?
अनादि अनन्त में उसे उत्पत्ति नाश से रहित बताना है और स्वसहाय में उसकी स्वतन्त्र स्थिति तथा स्वतन्त्र परिणमन बताना है । ( ८ )