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द्वितीय खण्ड/चौधी पुस्तक
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चेतना का ज्ञाताद्रष्टा हो जाता है। सूत्र १००६ से ११३८ तक जितना इन्द्रियसुखादि का वर्णन इस अधिकार में किया है। उसका सार यहाँ लाकर निकाला है क्योंकि इस असर अधिकार यात कर रहे हैं।
ननुल्लेरवः किमेतावानस्ति किं वा परोऽप्यतः ।
लक्ष्यते येन सदृष्टिलक्षणेनांचितः पुमान् ।। ११४० ॥ शङ्का-क्या इतना ही उल्लेख है अथवा इससे अन्य भी है जिस लक्षण से युक्त जीव 'सम्यग्दृष्टि' जाना जाता है?
आपराण्यपि लक्ष्माणि सन्ति सम्यग्दृगात्मनः ।
सम्यक्त्वेनाविनाभतैयैश्च संलक्ष्यते सुदक ॥ ११४१॥ समाधान-सम्यग्दृष्टि आत्मा के दूसरे लक्षण भी हैं। सम्यक्त्व से अविनाभावी जिनके द्वारा सम्यग्दृष्टि भले प्रकार जाना जाता है।
उक्तमाक्ष्यं सुरवं ज्ञानमनाटेयं दृगात्मनः ।
नादेयं कर्म सर्वं च तद्वद् दृष्टोपलब्धितः ॥ ११४२ ॥ अर्थ-(जैसे ) सम्यग्दृष्टि आत्मा के ऊपर कहा हुआ ऐन्द्रिय सुख और ऐन्द्रिय ज्ञान उपादेय नहीं है ( हेय है ) उसी प्रकार सब कर्म भी उपादेय नहीं है (हेय है। क्योंकि उसे अपने आत्म द्रव्य का प्रत्यक्ष हो गया है। (देखिये पूर्व सूत्र ११३९)।
परिशिष्ट प्रश्न १९१ - सामान्य धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जो धर्म सब द्रव्यों में पाया जाये उसे सामान्य धर्म कहते हैं जैसे द्रव्यत्व, गुणत्व, पर्यायत्व, उत्पादव्ययधुक्त्व,
अस्तित्व-नास्तित्व, नित्यत्व-अनित्यत्व, तत्पना-अतत्पना, एकत्व-अनेकत्व इत्यादि। (७, ७७०) प्रश्न १९२ - विशेष धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जो सब द्रव्यों में न पाया जाये किन्तु कुछ में पाया जाये उसे विशेष धर्म कहते हैं जैसे चेतनत्व-अचेतनत्व, कियत्व, मूर्तत्व-अमूर्तत्व, अलोकत्व इत्यादिक ।
(७, ७७०) प्रश्न १९३ - जीव-अजीव की विशेषता बताओ। उत्तर - चेतना लक्षण जीव है, अचेतन लक्षण अजीव है। जीव चेतन हैं शेष पाँच अचेतन हैं। (७७१) प्रश्न १९४ - मूर्त-अमूर्त की विशेषता बताओ । उत्तर – जो इन्द्रिय के ग्रहण योग्य हो अथवा जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पाया जाये वह मूर्त है। इससे विपरीत अमूर्त है। एक पुद्गल मूर्त है। शेष पाँच अमूर्त हैं।
(७७५, ७७७) प्रश्न १९५ - लोक-अलोक की विशेषता बताओ। उत्तर – घद्रव्यात्मक लोक है उससे विपरीत अर्थात् आकाश मात्र अलोक है।
(७९०,७९१) प्रश्न १९६ – किया, भाव की विशेषता बताओ । उत्तर - प्रदेशों का चलनात्मक परिस्पन्द किया है तथा प्रत्येक वस्तु में धारावाही परिणाम भाव है। क्रियावान् दो जीव और पुद्गल है। भाववान छहों हैं।
(७९४) प्रश्न १९७ - सामान्य जीव का स्वरूप बताओ । उत्तर - जीव स्वतः सिद्ध, अनादि अनन्त, अमूर्तिक, ज्ञानादि अनन्त-धर्ममय, साधारण-असाधारण गुण युक्त,
लोकप्रमाण असंख्यात किन्तु अखण्ड अपने प्रदेशों में रहने वाला, सबको जानने वाला, किन्तु उन सबसे भिन्न तथा उनसे और कोई सम्बन्धन रखने वाला,अविनाशी द्रव्य है। सबजीव समान रूप से इसी स्वभाव के धारी
(७९८,७९९,८००)