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प्रवचन- ५०
२३
किसी को आत्मसंयम करना है, इन्द्रियविजेता बनना है, वह बन सकता है। उनके लिए ही यहाँ कुछ उपाय बताता हूँ।
० यदि आपकी शादी नहीं हुई है तो आप किसी भी स्त्री या लड़की के शरीर को स्पर्श मत करो। यदि आप छोटे बच्चे हैं तो माता-बहन आदि के साथ स्पर्श कर सकते हो । परन्तु कुमार और युवान हो तो अनावश्यक स्पर्श माता और बहन का भी नहीं करना चाहिए ।
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● यदि आपकी शादी हो गई है तो अपनी पत्नी के अलावा दूसरी किसी भी स्त्री को हँसी-मजाक में भी स्पर्श मत करो ।
० यदि आप महिला हैं तो अपने पति के अलावा किसी भी पुरुष को स्पर्श मत करो।
० राग से या मोह से, पुरूष को पुरूष के साथ भी स्पर्श नहीं करना चाहिए। उसी प्रकार स्त्री को भी राग से या मोह से स्त्री के शरीर को स्पर्श नहीं करना चाहिए ।
• मैथुनवृत्ति-विलासवृत्ति प्रज्वलित हो, वैसे नाटक-सिनेमा नहीं देखना चाहिए। वैसे चित्र नहीं देखने चाहिए। वैसी बातें या गीत भी नहीं सुनने चाहिए। वैसी किताबें नहीं पढ़नी चाहिए ।
● अपने शरीर के भी गुप्त भागों को निष्प्रयोजन स्पर्श नहीं करना चाहिए । दूसरों के शरीर को विकार - भावना से नहीं देखना चाहिए ।
• बहुत उत्तेजक और मादक पदार्थों का भक्षण नहीं करना चाहिए । नशीली दवाइयाँ नहीं लेनी चाहिए। किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए।
यदि स्पर्शेन्द्रिय पर विजय पाना है, कुछ अंश में भी विजय पाना है तो इन बातों की उपेक्षा मत करना । इन बातों की उपेक्षा करके यदि तप करोगे, जप करोगे, ज्ञान-ध्यान करोगे, तो भी इन्द्रियविजेता नहीं बन पाओगे ।
गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों में यह पाँचवा धर्म है-इन्द्रियविजय। इन सामान्य धर्मों को जीवन में स्थान देकर मानवता को उज्ज्वल करो, यही मंगल कामना ।
आज बस, इतना ही ।
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