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प्रवचन-५६ वेश-भूषा मर्यादापूर्ण रखो : ___ आज तो मुझे विशेष करके महिलाओं को कहना है कि वे अपनी वेश-भूषा में विवेक को स्थान दें। जैनशासन की महिलाओं को चाहिए कि वे अपनी मर्यादाओं का दृढ़ता से पालन करें | वे सिनेमा देखे नहीं, और देखें तो उसका अनुकरण नहीं करें | महिलाओं पर तो सकल संघ की जिम्मेदारी है। उनके ही पुत्ररत्न साधु बनेंगे, उनकी ही कन्यारत्न साध्वी बनेंगी, उनकी ही संतान श्रावक और श्राविक बनती हैं। चतुर्विध संघ का मूल स्रोत ही तो महिला है। तो, मूल स्रोत को कितना निर्मल रखना चाहिए? कितना पवित्र और सुरक्षित रखना चाहिए? __ हमारे जिनशासन की माताओं को और बहनों से मेरा आग्रहपूर्ण निवेदन है कि वे एकदम मर्यादा में रहती हुई वेश-भूषा करें। अपने वैभव, अपनी उम्र अपनी अवस्था और समाज के अनुरूप वेश-भूषा करें।
आप अपने शरीर को आवृत्त रखों। आप अपने सौन्दर्य को कभी भी प्रदर्शनी की वस्तु मत बनायें। सुन्दर दिखने की इच्छा के बजाय शीलवती
और गुणवती दिखने की इच्छा बनाये रखें। आधुनिक युगप्रवाह में बह नहीं जायें । अपने आदर्शों को अच्छी तरह समझें और दृढ़ता से आदर्शों का पालन करें। आप इस तरह महान् आदर्शों को समझें कि दूसरों को समझा सकें। अपने बच्चों को समझा सकें । अपने पति को समझा सकें और स्नेही-स्वजनों को भी अवसर आने पर समझा सकें।
जिनशासन को पानेवाली, समझनेवाली महिलाओं से ही ऐसी अपेक्षाएँ रखी जा सकती हैं, औरों से तो ऐसी अपेक्षाएँ कैसे रखू? हालाँकि जब आकाश ही फट गया है तब उसको सीना असंभव-सा लगता है। स्वाभाविक ही आकाश ठीक हो जाय....कोई चमत्कार हो जाय तो बात बन सकती है, अन्यथा नहीं।
अयोग्य-अनुचित वेश-भूषा का त्याग कर के योग्य और समुचित वेश-भूषा करें - यही गृहस्थ जीवन का दसवाँ सामान्य धर्म है। इस धर्म का यथायोग्य पालन करने में सक्षम बनें, यही मंगल अभिलाषा ।
आज बस, इतना ही।
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