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प्रवचन-७१ भोजन समय पर करें :
काले भोजनम्! जब भूख लगे तभी भोजन करना चाहिए। चाहे प्रकृति के अनुकूल भोजन हो, परन्तु बिना भूख लगे, नहीं खाना चाहिए । भूख लगने पर आप भोजन करेंगे तो वह शीघ्र हजम हो जायेगा। बिना भूख आप भोजन करेंगे तो हाजमा बिगड़ जायेगा, संभव है अजीर्ण भी हो जाय।
क्षुधा का अनुभव होने पर भी यदि भोजन नहीं लिया जाय तो शरीर का बल क्षीण होता है। क्षुधा शान्त होने पर यदि भोजन किया जाय तो भी शरीर को हानि पहुंचती है। इसलिए, जब क्षुधा का अनुभव हो तभी भोजन करना चाहिए।
वह भिखारी-सेठ समय पर भोजन करता है। शरीर से स्वस्थ है, मन से स्वस्थ है और अब उसमें आत्मदृष्टि भी खुलती है। उसके मन में बार-बार उन उपकारी महात्मा की स्मृति हो आती है। वह मन से भावपूर्वक वंदना करता रहता है। 'उन महात्मा की महती कृपा से ही आज मैं इस सुखी अवस्था को पाया हूँ। उन्होंने मुझे कैसी अच्छी प्रतिज्ञा दी? इस प्रतिज्ञा के प्रभाव से ही मैं तन-मन-धन से सुखी बना हूँ। अब मुझे मेरी आत्मा के कल्याण के लिए धर्मपुरुषार्थ करना चाहिए।' ___ उपकारी के उपकारों को भूलना नहीं, यह एक महान् गुण है। यह गुण जिस मनुष्य में होता है, उसमें दूसरे अनेक गुणों का आविर्भाव होता है। गुणवान् व्यक्ति को धर्माराधना विशेष फलवती होती है। भिखारी-सेठ की धर्माराधना फलवती हुई। उनका आयुष्य पूर्ण हुआ और उनका जन्म एक राजा के वहाँ हुआ। पुण्यकर्म का प्रभाव :
इसके जन्म होने से पूर्व उस राजा की सभा में एक अष्टांग-निमित्त शास्त्र में पारंगत विद्वान् आया था। उसने राजा को कहा था : 'राजन्, आपके राज्य में बारह साल का अकाल पड़ेगा।' राजा ने अकाल के समय प्रजा को परेशानी न हो, इसलिए अनाज वगैरह का संग्रह करना शुरू किया था। उन दिनों में ही रानी ने पुत्र को जन्म दिया | जन्म होते ही आकाश में बादलों की घटा जम गई और ऐसी वर्षा हुई कि राज्य में श्रेष्ठ फसल पैदा हुई। राजा को आश्चर्य हुआ। उधर उस अष्टांग-निमित्तों में पारंगत विद्वान् ने भी पुनः अपने निमित्तज्ञान से देखा । उनको भी बड़ा आश्चर्य और अपार खुशी हुई।
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