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प्रवचन- ७१
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एक घर पर उसको गेहूँ की रोटी मिल गई। दूसरे घर पर गया तो घर की महिला बाजरे की रोटी देने लगी । भिखारी ने मना किया, महिला ने कारण पूछा। भिखारी ने कारण बताया। महिला प्रभावित हुई। उसने भिखारी को पर्याप्त सब्जी दी । भिखारी बीमार था, थोड़ा-सा ही भोजन उसको चाहिए था, मिल गया, खा लिया। वैसे प्रतिदिन वह भिक्षा लेने लगा। महिलाओं की उसके प्रति सहानुभूति बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उसे एक-एक घर से ही पूरा भोजन मिलने लगा । लोग उसको अपने घर में ही भोजन कराने लगे। उसके रोग दूर हो गये। वह जहाँ भोजन करता, उस घर का छोटा-बड़ा काम भी कर देता था। गृहिणी - वर्ग का सद्भाव बढ़ने लगा ।
किस्मत ने करवट बदली :
एक दिन, जिस घर में उसने भोजन किया, उस घर के मालिक ने उससे कहा : ‘आज तू मेरी दूकान पर चलना, वहाँ थोड़ा काम है, तू करना, तुझे पैसा दूँगा।' भिखारी दुकान पर गया। दुकान का काम करके वह एक तरफ बैठा रहा। उस दिन शाम को सेठ ने जब अपना हिसाब देखा....तो ताज्जुब में रह गये। उन्होंने कल्पना से भी ज्यादा मुनाफा कमाया था। उन्होंने सोचा : ‘आज मैंने इतने सारे रुपये कैसे कमाये ? अवश्य, इस भिखारी के आज यहाँ आने से और बैठने से ही यह ज्यादा कमाई हुई है। ऐसा लगता है कि इसका भाग्योदय हुआ है। मनुष्य का भाग्यचक्र घूमता रहता है। सुख के बाद दुःख आता है, तो दुःख के बाद सुख भी आता है। इस महानुभाव के दुःख के दिन पूरे हो गये हैं और सुख के दिन आ गये हैं। क्या पता, इसने जो प्रतिज्ञा-धर्म का पालन किया है....इसका भी यह फल हो सकता है । आज भी वह प्रतिज्ञा का दृढ़ता से पालन कर रहा है। मेरे घर में कभी-कभी वह काम करता है....मैंने देखा है, प्रमाणिकता से काम करता है। मैं क्यों न उसको मेरी दुकान में हिस्सेदार (पार्टनर) बना लूँ? अच्छा व्यक्ति है । '
सेठ के ये विचार कितने प्रेरणादायी हैं, आपने सोचा क्या ? ज्यादा कमाई हुई तो उसमें उन्होंने अपने पुण्योदय को नहीं मानते हुए उस भिखारी के पुण्योदय को कारण माना। उनके मन में यह धारणा होगी कि 'मैं तो वही हूँ, जो कल था इस दुकान में, इतने वर्षों में मैंने एक दिन में इतनी कमाई नहीं की है, आज ही इतनी ज्यादा कमाई हुई है .... और भिखारी भी आज ही दुकान पर आया है। इसलिए, भिखारी का पुण्योदय ही कारणभूत होना चाहिए ।
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