Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 263
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७२ २५५ वचन की-बोलने की रचना व मन की रचना में प्रवृत्त होता है। पहला काम वह भोजन का करता है। जीवन के साथ भोजन अनिवार्य है। भोजन और जीवन : एक बात आप ध्यान से सुन लें : भोजन जीवन के लिए है, जीवन भोजन के लिए नहीं है। जीवन क्या है? तन, मन, वचन और श्वासोच्छवास-यही जीवन है। तन नीरोगी हो, मन स्वस्थ हो, वाणी स्पष्ट हो और श्वासोच्छवास नियमित हो-तो जीवन सुखी कहा जा सकता है। तन-मन का स्वास्थ्य, वचन की क्षमता और श्वासोच्छवास की नियमितता भोजन पर अवलंबित है। यदि सोच-समझकर भोजन नहीं किया जाय तो जीवन के ये चारों प्रमुख अंगों में गड़बड़ी पैदा हो जाती है। इसलिए यह २०वाँ सामान्य धर्म बहुत ही महत्त्वपूर्ण धर्म है। अपने जीवन में इस धर्म का पालन होना ही चाहिए। लेकिन यह बात हृदय में पहुँचे तब न? बात हृदय में पहुँचती है? ० भोजन आपकी प्रकृति के विरुद्ध नहीं करोगे न? ० जब भूख लगे तभी भोजन करोगे न? ० रुचि से ज्यादा भोजन नहीं करोगे न? ० अजीर्ण होने पर भोजन का त्याग यानी उपवास करोगे न? वैद्य ने खाँसी का इलाज बताया : ये बातें आपके हृदय तक पहुँचेंगी तो ही आप इन बातों का पालन करेंगे। एक महानुभाव हैं, उनको दही खाना पसंद है। उनको दमा की बीमारी हो गई। वैद्य के पास गये। वैद्य ने कहा : 'दवाई तो देता हूँ परन्तु आपको दही का त्याग करना होगा।' इसने दवाई नहीं ली। खाँसी भी शुरू हो गई। घर के स्वजन उनको समझाते हैं, फिर भी वह नहीं समझता है और दही खाता रहता है। स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ता है। पत्नी एक-दूसरे वैद्य के पास गई और परिस्थिति बताई। वैद्य ने कहा : 'चिन्ता मत करो, मैं घर पर चलता हूँ।' वैद्य घर पर आया । उसने कहा : 'मैं दवाई देता हूँ, दमा मिट जायेगा और खाँसी भी मिट जायेगी।' दर्दी ने कहा : ‘परन्तु मैं दही तो नहीं छोड़ सकता....।' वैद्य ने कहा : 'आप दही भी खाइये और दवाई भी लीजिये | जी भरकर दही खाइये।' For Private And Personal Use Only

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