Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 270
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७२ २६२ क्या? बुद्धि यदि राग-द्वेष से ग्रसित होगी, तो आप इन बातों को नहीं समझ पायेंगे। ० कैसे खाना? ० कब खाना? ० क्या खाना? ० क्या नहीं खाना? क्यों नहीं खाना? ० कब नहीं खाना? क्यों नहीं खाना? ० क्या पीना? ० कब पीना? ० क्या नहीं पीना? क्यों नहीं पीना? ० भोजन करने के लिए कैसे बैठना? ० पानी किस तरह बैठकर पीना? क्यों? । ये सारी बातें माता-पिता को अच्छी तरह जान लेनी चाहिए और ब-खूबी बच्चों को समझानी चाहिए। बच्चों को उनकी भाषा में समझानी चाहिए। बच्चों के प्रश्न सुनकर गुस्सा नहीं करना चाहिए। जो बात नहीं समझा सको उस बात को लेकर कहना कि : 'तेरा प्रश्न अच्छा है, मैं सोचकर जवाब दूंगा।' बच्चों की जिज्ञासावृत्ति को तोड़ना नहीं चाहिए। कभी माता-पिता ऐसी भूल करते रहते हैं, अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिए वे बच्चों पर गुस्से होकर, बात को टाल देते हैं। इस क्रिया की प्रतिक्रिया तब आती है, जब बच्चे युवक बन जाते हैं। आपकी बात का जब वे जवाब नहीं दे पाते हैं तब वे गुस्सा करते हैं। होता है न ऐसा? चौथी बात है : अजीर्ण में भोजन का त्याग | पहले किया हुआ भोजन जब तक हजम नहीं हुआ है, अथवा हजम हुआ हो परन्तु पूरा हजम नहीं हुआ हो, तब तक भोजन नहीं करना चाहिए | सर्वथा भोजन नहीं करना चाहिए | चूँकि सभी रोगों का मूल अजीर्ण है। सभी रोग अजीर्ण में से पैदा होते हैं। अजीर्ण में भोजन करने से रोगों की वृद्धि होती है। अजीर्णप्रभवा रोगास्तत्राजीर्णं चतुर्विधम् । आमं विदग्धं विष्टब्धं रसशेषं तथापरम् ।। टीकाकार आचार्यश्री ने चार प्रकार के अजीर्ण बताये हैं - १. आम अजीर्ण For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 268 269 270 271 272 273 274