Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 264
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७२ २५६ दर्दी ने कहा : 'दूसरे वैद्यराज तो दही छोड़ने का कहते हैं और आप दही खाने का कहते हैं....ऐसा क्यों?' वैद्य ने कहा : 'दही में अनेक गुण हैं, परन्तु तीन गुण बड़े हैं१. दमा के दर्द में दही खानेवाला कभी भी वृद्ध नहीं होता। २. उसके घर में चोर नहीं आते। ३. उसको रास्ते में कुत्ते नहीं काटते। दर्दी ने कहा : 'ऐसा कैसे?' वैद्य ने कहा : 'दमा में और खाँसी में दहीं खानेवाला शीघ्र मर जाता है इसलिए वृद्धावस्था नहीं आती । रातभर वह खाँसी खाता रहता है इसलिए घर में चोर नहीं आते। और वह लकड़ी के सहारे ही चलता है इसलिए कुत्ते नहीं काटते । समझे न? चार बातें महत्त्व की : उस महानुभाव के हृदय में बात पहुँच गई और उन्होंने दही का त्याग कर दिया। आप लोगों के हृदय में ये चार बातें पहुँच जायेंगी तब आप भी - १. अपनी प्रकृति से विरुद्ध भोजन नहीं करेंगे। २. जब आपको क्षुधा लगेगी तब ही भोजन करेंगे। ३. भोजन की रुचि समाप्त होने पर भोजन नहीं करेंगे। ४. अजीर्ण हो जाने पर आप उपवास करेंगे। दो बातें गत प्रवचन में आपको बतायी हैं, आज तीसरी और चौथी बात बताऊँगा। जब मनुष्य को प्रिय भोजन मिलता है, यदि वह लोलुप होगा तो अधिक भोजन करेगा। अधिक भोजन करने से उसकी तीन प्रतिक्रिया होती हैं : वमन होता है, दस्त लग जाती है अथवा मृत्यु हो जाती है। भले ही आप प्रकृति के अनुकूल भोजन करते हों, भूख लगने पर भोजन करते हों, परन्तु अधिक.... खूब ज्यादा भोजन करते हों तो, इन तीन प्रतिक्रियाओं में से कोई न कोई एक प्रतिक्रिया तो आयेगी ही। राजा कंडरिक और पुंडरिक की कहानी : राजा कंडरिक की मृत्यु ऐसे ही हुई थी न? अपने आगम ग्रन्थों में एक For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274