Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 265
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ प्रवचन-७२ कहानी आती है। पुंडरिक नगर था। राजा का नाम भी पुंडरिक था। छोटा भाई था कंडरिक, वह युवराज था। एक विशिष्ट ज्ञानी साधु भगवंत नगर में पधारे। राजा परिवार सहित धर्मोपदेश सुनने उद्यान में साधु भगवंत के पास गया । वैराग्यपूर्ण धर्मोपदेश सुनकर राजा को वैराग्य हो गया। युवराज कंडरिक को भी वैराग्य हो गया। राजमहल में लौटकर राजा ने कंडरिक से कहा : 'भाई, मैं इस संसार का त्याग कर, साधुजीवन जीना चाहता हूँ, इसलिए तेरा राज्याभिषेक करना चाहता हूँ| तू राजा बनकर प्रजा का पालन करना।' ___ कंडरिक ने कहा : 'हे पिता तुल्य भ्राता, आज गुरुदेव का उपदेश सुनकर मेरे हृदय में भी वैराग्य पैदा हुआ है। मुझे अब ये वैषयिक सुख दुःखरूप लगते हैं, इसलिए मैं संसार त्याग करना चाहता हूँ और चारित्र्य जीवन अंगीकार करना चाहता हूँ। आप मुझे अनुमति प्रदान करने की कृपा करें।' दो भाइयों के बीच वार्तालाप हुआ। निर्णय यह हुआ कि पुंडरिक राजा बना रहे और कंडरिक साधु बन जाय। कंडरिक ने संसार त्याग किया, वह साधु बन गया। गुरुदेव के साथ अन्यत्र विहार कर गया। कंडरिक ने ज्ञान-ध्यान से उग्र तपश्चर्या शुरू की। कुछ वर्षों में उसके शरीर में रोग पैदा हो गये। समता-भाव से वे रोगों को सहन करते हैं। गुरुदेव के साथ विहार करते-करते वे पुंडरिक के नगर में पधारते हैं। राजा पुंडरिक परिवार सहित वंदन करने जाता है। पुंडरिक ने कंडरिक मुनि के रुग्ण शरीर को देखा। उन्होंने अपने मन में कुछ सोचा और वे गुरुदेव के पास गये। गुरुदेव को विनय से राजा ने कहा : 'गुरुदेव, कंडरिक मुनि का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, यदि आप अनुमति दें तो वे यहाँ कुछ समय स्थिरता करें और यहाँ कुशल वैद्यों के पास उनकी मैं चिकित्सा करवाऊँ । संयमधर्म की आराधना में शरीर तो मुख्य साधन है। शरीर स्वस्थ होगा तो वे अच्छी संयमआराधना कर सकेंगे।' आसक्ति पनपती है स्वाद से : गुरुदेव ने अनुमति दे दी। दो अन्य मुनिवरों के साथ कंडरिक मुनि वहाँ रुक गये और गुरुदेव ने वहाँ से विहार कर दिया। राजा पुंडरिक ने वैद्यों के पास कंडरिक मुनि की चिकित्सा शुरू करवा दी। कुछ दिनों में मुनि नीरोगी हो गये परन्तु फिर भी वे अशक्त थे, इसलिए वैद्यों ने शक्तिवर्धक दवाइयाँ देनी For Private And Personal Use Only

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