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प्रवचन-७१
२४७ स्वास्थ्य का विचार भी पैदा हो सकता है। धर्मग्रन्थों में एक भिखारी का किस्सा पढ़ने में आया है। भिखारी की कहानी :
एक भिखारी था, भिक्षा माँगकर गुजारा करता था। भिक्षा में जो मिल जाता वह खा लेता। पहले दिन का बचा-खुचा भोजन दूसरे दिन भी खाता था। उसके शरीर में अनेक रोग पैदा हो गये। गाँव के बाहर एक वृक्ष के नीचे वह बैठा था | जीवन से निराश हो गया था । मन में आर्तध्यान करता था | इतने में वहाँ एक महात्मा पधारे। भिखारी ने दो हाथ जोड़कर प्रणाम किया। महात्मा ने भिखारी को देखा। उन्होंने बड़े वात्सल्य से भिखारी से कहा : 'तेरे शरीर में अनेक रोग पैदा हो गये हैं न?' भिखारी ने कहा : 'हाँ, रोगों से बहुत परेशान हूँ....' महात्मा ने कहा : 'तेरे रोग मिटाने हैं क्या?' भिखारी ने कहा : ‘रोग तो मिटाने हैं, आप कोई उपाय बताने की कृपा करें....' महात्मा ने कहा : 'मेरा कहा मानेगा? मैं कहूँ वैसे करेगा?' भिखारी ने कहा : 'अवश्य, आप जो भी कहेंगे, मैं उसका पालन करूँगा।'
महात्मा ने कहा : 'तू रोजाना एक ही अन्न खाना, एक ही सब्जी खाना और एक ही विगई खाना। विगइयाँ छह प्रकार की होती है : दूध, दही, घी, तेल, गुड़-शक्कर और तली हुई वस्तुएँ। इनमें से एक ही वस्तु खाना । मैं जानता हूँ कि तू भिखारी है, भिखारी को भिक्षा में जो भी मिले, वह खाना पड़ता है। परन्तु तू ध्यान रखना, भिक्षा में गेहूँ की रोटी ले लेना, बाद में चावल, बाजरा या किसी प्रकार के धान्य की वस्तु नहीं लेना। सब्जी में यदि कोई एक सब्जी मूंग की या चने की मिल गई, दूसरी सब्जी नहीं लेना। विगई में घी, तेल या कोई भी विगई मिल गई, दूसरी नहीं लेना। दूसरे दिन नयी ही भिक्षा लेने जाना। बासी मत खाना| बोल, करेगा इस प्रकार? यदि करेगा तो तेरे रोग दूर हो जायेंगे | तेरा स्वास्थ्य ठीक हो जायेगा। जीवन-पर्यंत इस प्रतिज्ञा का पालन करना होगा।'
भिखारी को शरीर स्वस्थ करना था। चूँकि वह रोगों से बहुत परेशान था। उसने महात्मा के समक्ष प्रतिज्ञा ले ली। महात्मा चले गये अपने रास्ते पर। भिखारी नगर में भिक्षा लेने चला।
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