Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 254
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ७१ २४६ वैद्य या डॉक्टर के कहने पर भी जो मनुष्य प्रकृति - विरुद्ध खाता और पीता है - ऐसे व्यक्ति मोक्षमार्ग की आराधना कैसे कर सकते हैं? रसनेन्द्रिय के परवश पड़ा हुआ जीव, 'यह भोजन मेरी प्रकृति के प्रतिकूल है, मेरे स्वास्थ्य के प्रतिकूल है, इसलिए मुझे नहीं करना चाहिए, ऐसा सोच ही नहीं सकता है । कभी सोच भी ले, आचरण में- 'प्रेक्टिस' में नहीं ला सकता है। आत्मकल्याण की नहीं, मनःस्वास्थ्य की भी नहीं, शरीर की नीरोगिता की दृष्टि से भी रसलोलुप मनुष्य प्रकृति - विरुद्ध आहार का त्याग नहीं कर सकता है। वैसी जघन्य रसलोलुपता किस काम की जो शरीर का ही नाश कर दे ? सभा में से : शारीरिक स्वास्थ्य के लक्ष्य से 'रसत्याग' किया जाय अथवा 'द्रव्य संक्षेप' किया जाय, वह क्या उचित है ? वह धर्म कहा जायेगा ? स्वस्थ शरीर धर्मआराधना में सहायक : महाराजश्री : शारीरिक स्वास्थ्य का लक्ष्य क्या है ? आत्मकल्याण की आराधना है। शरीर स्वस्थ और निरोगी होगा तो आत्मशुद्धि की साधना अच्छी तरह हो सकेगी। दूसरी बात, जो रसलोलुप मनुष्य शारीरिक दृष्टि से भी रसत्याग नहीं करता है वह मनुष्य आत्मा का हित कैसे सोच सकता है ? शरीर तो रूपी है न? आत्मा अरूपी है, रूपी ऐसे शरीर के लिए जो मनुष्य रसत्याग नहीं कर सकता है, वह मनुष्य अरूपी वैसी आत्मा के लिए कैसे रसत्याग करेगा ? सभा में से: हम लोग तो जिह्वेन्द्रिय के इतने परवश हैं कि 'आत्मा' याद ही नहीं आती है। महाराजश्री : आत्मा तो याद नहीं आती, शरीर का आरोग्य भी याद नहीं आता है न? रसनेन्द्रिय - जिह्वेन्द्रिय की इतनी ज्यादा लोलुपता बढ़ गई है कि मनुष्य अपनी प्रकृति को तो सोचता नहीं है, भक्ष्य और अभक्ष्य का विचार भी नहीं करता है। भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार पाप और पुण्य के साथ संबंध रखता है, पाप-पुण्य का संबंध आत्मा के साथ है। रसलोलुपी को आत्मा का विचार कैसे होगा? कुछ भक्ष्य पदार्थ भी ऐसे होते हैं जो मनुष्य की प्रकृति के प्रतिकूल होते हैं, उन पदार्थों का भी त्याग करना चाहिए । परन्तु यह तभी संभव होगा जब स्वाद की दृष्टि गौण रहेगी और स्वास्थ्य की दृष्टि मुख्य रहेगी। शरीर के स्वास्थ्य का विचार करनेवाले में कभी मन के स्वास्थ्य का और आत्मा के For Private And Personal Use Only

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