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प्रवचन-७१
२४४ 'सात्म्य' का अर्थ यही किया गया है।
पानाहारादयो यस्याविरुद्धाः प्रकृतेरपि ।
सुखित्वायावलोक्यंते तत्सात्म्यमिति गीयते ।। प्रकृति-स्वभाव की पहचान :
आप लोगों को अपनी-अपनी प्रकृति का ज्ञान होना चाहिए। प्रकृति तीन प्रकार की होती है : वात-प्रधान प्रकृति, पित्त-प्रधान प्रकृति और कफ-प्रधान प्रकृति । हर मनुष्य की इसमें से कोई एक प्रकृति होती ही है। उस प्रकृति का ज्ञान होना चाहिए । 'मेरी वात-प्रधान यानी वायु-प्रधान प्रकृति है? या पित्तप्रधान प्रकृति है? या कफ-प्रधान प्रकृति है?' यदि आपको अपनी प्रकृति का ख्याल नहीं आता हो तो किसी अच्छे वैद्य से पूछकर निर्णय करना चाहिए। संक्षेप में मैं बताता हूँ :
० भोजन के बाद वायु का प्रकोप बार-बार होता हो तो समझना चाहिए कि वात-प्रधान प्रकृति है।
० भोजन के बाद कभी भी पित्त उछलता हो, सिरदर्द रहता हो तो समझना चाहिए कि पित्त-प्रधान प्रकृति है। उपवास में भी पित्त उछलता हो, तो वह पित्त-प्रप्रकृति का द्योतक है।
० भोजन के बाद यदि कफ ज्यादा हो जाता हो तो समझना चाहिए कि कफ-प्रधान प्रकृति है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जिस भोजन से स्वास्थ्य को हानि होती हो और बुद्धि कुंठित होती हो, वैसा भोजन नहीं करना चाहिए। मात्र स्वाद की दृष्टि से भोजन नहीं करना चाहिए, स्वास्थ्य का लक्ष्य होना ही चाहिए। यदि शरीर के स्वास्थ्य का लक्ष्य नहीं है तो फिर मन के स्वास्थ्य का लक्ष्य कैसे रहेगा? आत्मा के स्वास्थ्य का लक्ष्य कैसे रहेगा? स्वस्थ तन में स्वस्थ मन ही स्वस्थ आत्मा को पाने का पुरुषार्थ कर सकता है।
सभा में से : हम लोगों में आत्मा को पाने की इच्छा ही कहाँ जगी है? शरीर को तो स्वस्थ रखो :
महाराजश्री : नहीं जगी है न? परन्तु वैसी इच्छा जगे, यह तो चाहते हो न? आत्मा को, विशुद्ध आत्मा को पाने की इच्छा नहीं जगी है, परन्तु पवित्र
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