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प्रवचन-७१
२४५ और निर्मल मन हो, वैसी इच्छा तो है न? मन की बात भी छोड़े, स्वस्थ और नीरोगी शरीर तो चाहिए न? कोई भी पुरुषार्थ करने के लिए नीरोगी और सशक्त शरीर तो चाहिएगा न? नीरोगी और सशक्त शरीर का आधार है भोजन। प्रकृति के अनुकूल भोजन। मिठाई ने कर दी सफाई :
एक महानुभाव थे। धर्मशास्त्रों के अभ्यासी थे, परन्तु मिठाइयाँ खाने का भारी शौक था, गजब की रुचि थी। शारीरिक परिश्रम तो था नहीं जीवन में | शरीर बढ़ता रहता था । उनको 'डायाबीटीज' हो गया। डॉक्टरों ने सभी मिष्ठ पदार्थों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। चाय में भी शक्कर डालने की नहीं, बिना शक्कर की चाय पीने की....। वे महानुभाव जितने 'डायाबीटीज' से दुःखी नहीं थे, उतने इस प्रतिबंध से दुःखी थे। डॉक्टर से कहा : 'कुछ रास्ता बताइये साब! कभी तो मिठाई खाने की प्रबल इच्छा हो जाती है...।' ___ डॉक्टर ने कहा : 'आपके शरीर में 'सुगर' की मात्रा ज्यादा है, दवाइयों से 'कंट्रोल' में आ जाने दो, बाद में इजाजत दे देंगे....।' फिर भी, उनको तो उसी दिन रसगुल्ले खाने थे....। डॉक्टर से कहा : 'डॉक्टर, ऐसी दवाई दे दो कि मैं मिठाई खाऊँ तो भी सुगर का प्रमाण बढ़ न पाये....।' डॉक्टर ने दवाई लिख दी। अब वे महानुभाव, जब प्रबल इच्छा होती तब मिठाई खा लेते और दवाई भी लेते! __ परिणाम क्या आया होगा आप अनुमान कर सकते हैं? उनके खून में 'डायाबीटीज' लग गया और एक दिन उनकी मृत्यु हो गई....कोई बड़ी उम्र भी नहीं थी। मिठाई खाना उनकी प्रकृति के अनुकूल नहीं था फिर भी रसलोलुपता से प्रेरित होकर खाते रहे तो मानव-जीवन को ही खो बैठे। खाने का शौक सीमित रहे तो अच्छा :
एक भाई, जो कि २८/३० साल की उम्र के होंगे, पेट में 'अल्सर' हो गया। डॉक्टर को बताया। डॉक्टर ने कहा : 'दवाई तो देता हूँ परन्तु खाने-पीने में सावधानी रखना। खट्टे पदार्थ मत खाना और तीखे-चरपरे पदार्थ मत खाना । खट्टा सरबत भी मत पीना।' डॉक्टर ने तो जो कहना था वह कह दिया, परन्तु ये भाईसाब मानें तब न? खट्टा खाते रहे और तीखा-चरपरा भी खाते रहे....! पत्नी और दो छोटे बच्चों को अनाथ छोड़कर वे परलोक की यात्रा पर चले गये।
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