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प्रवचन- ६२
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'दूसरे लोग कैसे जीते हैं - यह देखने के बजाय 'मुझे किस प्रकार जीना है’-यह सोचो। ज्ञानीपुरुषों के मार्गदर्शन के अनुसार अपनी जीवनपद्धति निश्चित करो। जीवनपद्धति के निर्णय में इन सामान्य धर्मों को स्थान दो । देश और काल के अनुसार थोड़ा-सा परिवर्तन करके भी इन सामान्य धर्मों को जीवन में स्थान दो। आप विश्वास रखो कि इससे आप दुःखी नहीं होंगे। इससे आपका सुख चला नहीं जायेगा, सुख बढ़ेगा, शान्ति बढ़ेगी और प्रसन्नता बढ़ेगी। अनेक दूषणों से आप बच जायेंगे। पारलौकिक जीवन भी सुधर जायेगा । विशिष्ट धर्मपुरुषार्थ करने की पात्रता भी बन जायेगी । गुणों का विकास होगा । दोषों का नाश होता जायेगा ।
मनुष्यजन्म महान् तो जन्म देनेवाले महान् क्यों नहीं?
सोलहवाँ सामान्य धर्म है माता-पिता की पूजा | माता-पिता की पूजा करनी चाहिए! जो जन्म देते हैं वे माता-पिता कहलाते हैं। दुनिया में यह संबंध बड़ा पवित्र माना गया है। मनुष्यजन्म महान् है तो मनुष्य को जन्म देनेवाले भी महान् क्यों नहीं ? परंतु यह महानता संतानों को तब दिखती है जब माता-पिता उनका वात्सल्य से पालन करते हैं और सुसंस्कारों का प्रदान करते हैं।
माता-पिता पूजनीय तभी बनते हैं जब वे संतानों के प्रति अपने कर्तव्यों का समुचित पालन करते हैं । कर्तव्यों का पालन तभी संभव है जब माता-पिता में विशिष्ट गुणों का आविर्भाव हो । ज्यादा नहीं तो चार गुण तो अवश्य चाहिए । पहला गुण है सहनशीलता, दूसरा गुण है स्नेहशीलता, तीसरा गुण है उदारता और चौथा गुण है गंभीरता । गुणमय व्यक्तित्व माता-पिता को महान् बनाता है। गुणमय व्यक्तित्व माता-पिता को पूजनीय बनाता है। गुणमय व्यक्तित्व वाले माता-पिता की ही पूजा करने की है। जो माता-पिता संतान को जन्म देकर ही निर्जन प्रदेश में छोड़ देते हैं अथवा अनाथाश्रम में भेज देते हैं, ऐसे माता-पिता पूजनीय नहीं बनते। जो माता-पिता क्रूर बनकर गर्भस्थ बच्चे को मार डालते हैं, वैसे कसाई जैसे माता - पिता पूजनीय नहीं बनते । जब से 'गर्भपात' को अपराध नहीं मानने की घोषणा सरकार की ओर से हुई है तब सेतो लाखों की संख्या में भारत में गर्भपात का घोर पाप होने लगा है। पेट में रहे अपने बच्चे की हत्या करवाने वाली स्त्री 'माँ' कहला सकती है क्या ? वह तो जिंदी डायन है !
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