________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-६७
२०२ अंगर्षि के चिन्तन को ध्यान से सुना न? उत्तम आत्माओं का चिन्तन इस प्रकार का होता है। यदि आप लोग कुछ सोचे-समझें तो कल्याण हो जाय । अंगर्षि ने उपाध्याय का दोष नहीं देखा और रुद्रक के प्रति शंका भी नहीं की। रास्ते में रुद्रक ईन्धन लिये बिना ही उसको मिला था न? तो वह शंका नहीं कर सकता था क्या? क्यों करता शंका? शंका करता भी, तो भी सबूत क्या था कि उस वृद्धा की हत्या रूद्रक ने की थी? उपाध्याय अंगर्षि की बात मानते ही, ऐसी भी बात नहीं थी। महत्त्व की बात सोचियेगा :
सभा में से : उपाध्याय ने क्या अंगर्षि का व्यक्तित्व नहीं जाना था? 'अंगर्षि किसी जीव की हत्या नहीं कर सकता,' ऐसा विचार क्यों नहीं आया उपाध्याय को?
महाराजश्री : प्रिय शिष्य का भी कभी पापोदय ऐसा आता है कि गुरु उसके निर्मल....स्वच्छ व्यक्तित्व को भूल जाते हैं और निरपराधी होने पर भी अपराध उस पर थोप देते हैं। बनता है ऐसा । सीताजी के प्रति श्रीराम ने ऐसा ही अपराध किया था न? 'सीताजी महासती है, ऐसा उद्घोष देवों ने जब किया था तब श्रीराम ने नहीं सुना था क्या? तो भी लोगों की बात सुनकर सीताजी का जंगल में त्याग करवा दिया था न?
बात महत्त्व की वह नहीं है कि रामचन्द्रजी ने क्या किया, परंतु महत्त्व की बात यह है कि सीताजी ने क्या किया! उपाध्याय ने क्या किया यह महत्त्व की बात नहीं हे, अंगर्षि ने क्या किया, यह महत्त्वपूर्ण बात है। एक व्यक्ति का पापोदय आयेगा तब दूसरा निमित्तरूप अपराधी बनेगा ही! अंगर्षि का पापोदय हुआ और उस पर स्त्रीहत्या का कलंक आया। उस पर उपाध्याय नाराज हुए और उसको घर से निकाल दिया गया।
इतना कष्ट आने पर भी अंगर्षि के मन में उपाध्याय के लिए एक भी अशुभ विचार नहीं आया, उपाध्याय के प्रति रोष नहीं आया और अपने लिए हीनता की भावना नहीं जगी....ये बातें महत्त्वपूर्ण हैं। ये बातें जीवन में जीने की हैं।
१. अपने प्रति अन्याय करनेवालों के लिए भी बुरा नहीं सोचना। २. अपना अहित करनेवालों के प्रति भी रोष नहीं करना । ३. दुःख में हीनभावना से भर नहीं जाना।
For Private And Personal Use Only