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प्रवचन-७०
इन दोनों रेस्तोरों में सभी कर्मचारी मंदबुद्धि के होते हैं, समाज से तिरस्कृत और परिवार से तिरस्कृत। मंदबुद्धि, विक्षिप्त चित्तवाले लड़केलड़कियाँ क्या काम कर सकते हैं? हयाशी कहते हैं : 'मुझे इन लोगों में आत्मविश्वास पैदा करना है। हम अपने इन नौकरों से कुछ मांगते नहीं हैं, हम उनसे प्यार करते हैं, उनका स्वीकार करते हैं और सबसे बड़ी बात तो यही है कि हम उनके विकसित होने की प्रतीक्षा करते हैं।' - हयाशी-दंपती प्रतिदिन मध्याह्न दो से चार, जब रेस्तोरों में भीड़ नहीं होती है तब कर्मचारियों को अध्ययन कराते हैं। __ मंदबुद्धि बच्चों को जन्म देनेवाले माता-पिता अपने बच्चों को तिरस्कृत करते हैं। जब कि हयाशी-दंपती ऐसे बच्चों का स्वीकार करते हैं....निरपेक्ष भाव से । निःस्पृह भाव से । स्वयं के तन-मन-धन का भोग देकर | कैसा अद्भुत आत्मविश्वास है हयाशी-दंपती में? लोकप्रियता की मुख्य सड़क है सेवा : ___ दीनजनों की सेवा करनेवालों के प्रति जनता को आदरभाव होता है। दुनिया उसको देवदूत के रूप में देखती है। इस दृष्टि से सोचेंगे तो धर्मप्रसार का भी यह एक अद्भुत उपाय है। ईसाई धर्म दुनिया में क्यों इतना फैल गया? ईसाई धर्मगुरुओं ने दीर्घदृष्टि से सोचकर 'दीनजनों की सेवा' का प्रमुख मार्ग अपनाया। दुनिया के सभी देशों में, जहाँ जहाँ गरीबी है, रुग्णता है, दीन-हीन लोग हैं, वहाँ ये लोग पहुँच गये। अभी भी पहुंच रहे हैं। लोग उनको देवदूत समझते हैं और बड़े प्रेम से ईसाई धर्म को स्वीकार कर लेते हैं। दुःख दूर करनेवाला धर्म कौन नहीं अपनायेगा? सुख-सुविधा देनेवाला धर्म किसको प्यारा नहीं लगेगा?
उन लोगों के पास-ईसाई धर्मगुरुओं के पास दीनजनों की सेवा करने की कला है। आज वर्तमान विश्व में सबसे ज्यादा लोग ईसाई धर्म को माननेवाले हैं-करीबन एक अरब और दस करोड़।
धर्मप्रसार की दृष्टि से भी दीनजनों की सेवा का कार्य शुरू करना चाहिए और तीव्र गति से इस कार्य को व्यापक बनाना चाहिए। दोनों काम होंगे - दीन-दुःखी का उद्धार होगा और वीतरागकथित धर्म का प्रसार होगा। परन्तु यह काम पूरी तमन्ना से उठाना चाहिए | थके बिना जीवनपर्यंत काम करते रहना चाहिए | जैन संघ की समग्र भारतीय स्तर पर एक संस्था होनी चाहिए,
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