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प्रवचन-६८
२१३ भी नहीं करते! धर्मकार्य तो ठीक, व्यावहारिक कार्य भी वे करना नहीं चाहते।
महाराजश्री : क्या बच्चे पैदा होते हैं तभी से ऐसे होते हैं? किसने उनको अनुशासनहीन बनाया? किसने उनको स्वच्छन्दता सिखायी? माता-पिता के हृदय में यदि संतानों के प्रति सद्भावना होती है और बुद्धि निर्मल होती है तो वे बाल्यकाल से ही संतानों के जीवननिर्माण में रस लेते हैं, अभिरुचि रखते हैं। इनकी संतानें बड़ी होने पर भी विनीत, आज्ञांकित और कार्यदक्ष बनती हैं।
कैसे-कैसे धर्मकार्यों में संतानों को और दूसरे आश्रितों को जोड़ना चाहिए, यह बात समझ लो।
१. परमात्मा के मन्दिर जाना और सद्पुरुषों के पास जाना - ये दो प्रवृत्ति तो सबके लिए होनी चाहिए।
२. जिसके हृदय में दया और करुणा ज्यादा हो, उसको जीवदया की प्रवृत्ति में जोड़ना चाहिए । जैसे, कई गाँव-नगरों में 'पिंजरापोल' गोशाला होती हैं, वहाँ रुग्ण, अनाथ पशु रखे जाते हैं, वहाँ जाकर उन पशुओं की देखभाल करनी चाहिए।
३. जिसको योगसाधना में रस हो, उसको सुयोग्य गुरु के पास भेजकर योगसाधना सिखानी चाहिए । प्रतिदिन कुछ समय वह योगसाधना करता रहे |
४. जिसको ज्ञानोपासना का रस हो, उसको धर्मग्रन्थों के अध्ययन में प्रेरित करना चाहिए।
५. जिसको परमात्मभक्ति में रस हो उसको विशेषरूप से परमात्मभक्ति में जोड़ना चाहिए।
६. जिसको ध्यान-साधना में अभिरुचि हो, उसको ध्यानमार्ग का अध्ययन कराकर उस दिशा में प्रवृत्त करना चाहिए।
७.जिसको तपश्चर्या करने में रस हो, उसको तपश्चर्या का स्वरूप समझाकर, तपोमय जीवन बनाने देना चाहिए। आश्रितों के प्रश्नों का समाधान करें : ___ परिवार के लोग यदि बुद्धिमान् होंगे तो आपको प्रश्न करेंगे : 'यह धर्मक्रिया क्यों करनी चाहिए? इस धर्मक्रिया का अर्थ क्या है? आपको प्रत्युत्तर देना होगा। वैसा प्रत्युत्तर देना होगा कि उनके मन में धर्मक्रिया की उपादेयता अँच जाय।
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