Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 241
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७० २३३ इसलिए जैन-परंपरा की पूजा-पद्धति आपको बताई है। हालाँकि, दिगम्बर जैन-परंपरा की पूजा-पद्धति आप जैसी नहीं है। वैसे दूसरे दूसरे 'गच्छों' की पूजा-पद्धतियों में थोड़ा बहुत अन्तर देखने को मिलता है। इन पूजा-पद्धतियों को लेकर भूतकाल में अनेक वाद-विवाद भी हुए हैं। विवाद नहीं : _ऐसे वाद-विवादों में उलझना नहीं है । वाद-विवादों में उलझने से मूल बात ‘परमात्मभक्ति' की विस्मृति हो जाती है। परमात्म-प्रीति नष्ट हो जाती है। इसलिए आप लोग वाद-विवादों में उलझना मत। दूसरी बात, आप लोग शास्त्रज्ञाता तो हैं नहीं। शास्त्रज्ञान के बिना वाद-विवाद कैसे कर सकोगे? हाँ, वाद-विवाद, शास्त्रज्ञान के बिना और तर्कशास्त्र के ज्ञान के बिना नहीं हो सकता। यदि आपको वाद-विवाद करना है तो शास्त्रों को पढ़ना शुरू करो। तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र भी पढ़ो। पढ़ोगे? बिना पढ़े ही वाद-विवाद करना है? तब तो मूर्ख कहलाओगे! आजकल ऐसे मूों की जमात अपने समाज में बढ़ने लगी है। किसी साधु-मुनिराज के सौ-दो सौ प्रवचन सुन लिये, कुछ पाँच-पचास धार्मिक किताबें पढ़ डाली....किसी मुनिराज ने कह दिया : तुम तो अच्छे विद्वान हो गये....| बस, वह अपने आपको सर्वज्ञ मानने लगता है! अपने गले में किसी 'गुरु' की माला पहनकर फिरता है और दूसरे मुनिजनों से शाब्दिक युद्ध करता फिरता है। कोई एक भी गंभीर धर्मग्रन्थ का अध्ययन, परिशीलन नहीं किया होता है। सब उधार ही उधार | वाद-विवाद करके अपना अहंकार पुष्ट करता है और दूसरों का तिरस्कार करता रहता है। आप लोग बचते रहना.... ऐसे लोगों के संगठनों में भी जुड़ना मत।। आप लोग आपकी परंपरानुसार परमात्मा की पूजा करते रहें और अतिथिजनों की सेवा करते रहें। 'अतिथि' किसको कहते हैं-समझ लें। अतिथि कौन? : जो महात्मा सदैव-प्रतिदिन शुभ और सुन्दर क्रियाकलापों में प्रवृत्त होते हैं, प्रतिदिन तप और संयम की साधना करते रहते हैं, वह अतिथि कहलाते हैं। उनको 'आज अष्टमी है','आज चतुर्दशी है....' ऐसा भेद नहीं होता है। उनके लिए रोजाना अष्टमी होती है, रोजाना चतुर्दशी होती है। जिनका चरित्र For Private And Personal Use Only

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