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प्रवचन-६९
___ २२४ मन्दिर में क्या करेंगे? :
मन्दिर में प्रवेश करते समय आपको 'निसीहि' बोलना चाहिए । 'निसीहि' का अर्थ है : 'अब मैं संसार की-दुनिया की कोई भी बात नहीं करूँगा, कोई भी कार्य नहीं करूँगा।' निसीहि यानी निषेध | सांसारिक कार्यों का निषेध | यह निषेध पूजक को स्वयं स्वीकार करना होता है। ___ मंदिर में जाना है परमात्मा की पूजा के लिए | वहाँ पर भी यदि दुनियादारी की बातें करते रहें, संसार के कार्य करते रहें, तो फिर पूजा कैसे होगी? परमात्मा के विचार कैसे रहेंगे आपके मन में? ___ सारे विचारों को मंदिर के बाहर छोड़कर ही मंदिर में प्रवेश करने का है। मात्र विचार करने के हैं परमात्मा के। यदि आप पर मंदिर की व्यवस्था की जिम्मेदारी नहीं है तो व्यवस्था-विषयक विचार भी नहीं करने के हैं। हाँ, जिन द्रव्यों से परमात्मा की पूजा करनी हो, उन द्रव्यों का विचार कर सकते हैं। __अन्य विचारों से मुक्त बनने के लिए, परमात्मा के चारों ओर तीन प्रदक्षिणा देने की है। प्रदक्षिणा फिरते समय परमात्मा के विचारों में ही मन को स्थिर रखने का है। परमात्मा के चारों ओर फिरने से मन परमात्मा में स्थिर हो सकता है। विचार परमात्मा के ही करने चाहिए। मन में परमात्ममूर्ति को साकार बनाना चाहिए। मन की आँखों से परमात्मा को देखने का प्रयत्न करें।
तीन प्रदक्षिणा देने के बाद, परमात्मा के सामने खड़े होकर तीन बार प्रणाम करना चाहिए। प्रणाम करते समय कमर से झुकें। दो हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर प्रणाम करें। इस क्रिया से नम्रता का भाव जाग्रत होगा। नम्रता के बिना नमस्कार नहीं हो सकता। तन विनम्र चाहिए, मन भी विनम्र चाहिए। परमात्मा के सामने किसी भी प्रकार का मान-अभिमान नहीं होना चाहिए | कपड़ों का विवेक :
परमात्मपूजन के लिए वस्त्र-परिधान भी वैसा ही चाहिए कि जिससे नम्रता का भाव बना रहे। बिना सिलाई के कपड़े इसलिए पहनने का विधान किया गया है। पेंट-बुशशर्ट पहनकर पूजा करने जाओगे तो नम्रता का भाव नहीं आयेगा| मेक्सी या स्कर्ट पहनकर जाओगे तो नम्रता का भाव नहीं आयेगा। आज कई तरूण-तरूणी एवं युवक-युवती इस बात को नहीं समझते हैं और मनचाहे वस्त्र पहनकर पूजा करते हैं.... बहुत बुरी बात है। मंदिरों में अनुशासन भी नहीं है। हाँ, जब तक लोग विवेकी थे तब तक अनुशासन की
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