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प्रवचन-६९
___ २२५ आवश्यकता भी नहीं थी। परन्तु अब, जब लोगों में से विवेक जा रहा है, तब अनुशासन की आवश्यकता है। ज्यादातर लोगों में धार्मिक ज्ञान है नहीं और मंदिर तो जाते-आते हैं | गलतियाँ करते रहते हैं।
विशेषकर, परमात्मा जिनेश्वरदेव का पूजन श्वेत वस्त्र पहनकर करना चाहिए | लाल या हरे जैसे भड़कीले रंग के वस्त्रों से पूजा नहीं करनी चाहिए। ___ सभा में से : कई जैनमंदिरों में लाल एवं पीले रंग के वस्त्र, पूजा के लिए रखे हुए होते हैं, ऐसा क्यों?
महाराजश्री : रोजाना धोने नहीं पड़ें....इसलिए | वे वस्त्र 'कॉमन' सर्वसाधारण होते हैं न? ८/१० दिन में धुलते होंगे। ऐसे वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। श्वेत, वस्त्र ही रखने चाहिए और वे भी अचानक कोई पूजक बाहर गाँव से आया हो और उसके पास पूजन के वस्त्र नहीं हों, उसके लिए रखने चाहिए। __पूजा के लिए शुद्ध पूजन-सामग्री होनी चाहिए। आप लोग सुखी हैं तो आपको अपनी ही सामग्री से पूजा करनी चाहिए। अथवा उतने रूपये मन्दिर की पेढ़ी में जमा करा देने चाहिए, जिससे मंदिर की पेढ़ी द्वारा रखी गई पूजन-सामग्री से आप पूजन कर सकें। पूजा के प्रकार :
पूजन तीन विभागों में विभाजित हैं : १. अंगपूजा, २. अग्रपूजा, ३. भावपूजा।
अब क्रमशः मैं आपको इन तीनों पूजाओं की विधि बताता हूँ। ध्यान से सुनें और याद रखें।
अंगपूजा :
सर्वप्रथम करने की है अभिषेकपूजा, जिसको जलपूजा भी कहते हैं। यह पूजा करने से पहले आपको, मेरू पर्वत पर ६४ देवेन्द्र मिलकर परमात्मा को नहलाते हैं-उस दृश्य की कल्पना करनी चाहिए। कितने उमंग से और उल्लास से देव परमात्मा को नहलाते हैं....! आपको भी उमंग से परमात्मा को नहलाना है। दो हाथ में कलश लेकर, परमात्मा की बाल्यावस्था को कल्पना में लाकर भक्तिभाव से अभिषेक करना चाहिए |
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