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प्रवचन- ६९
प्रेम कैसे होता है ?
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प्रेम होता है अनेक माध्यमों से । कुछ माध्यम इस प्रकार होते हैं :
● रूपवान् से प्रेम होता है,
● गुणवान् से प्रेम होता है,
● धनवान् से प्रेम होता है,
० शीलवान् से प्रेम होता है !
मैं आपसे पूछता हूँ कि परमात्मा में क्या नहीं है ? परमात्मा का रूप देवराज इन्द्र से भी बढ़कर होता है न? परमात्मा के गुण अनन्त होते हैं न? परमात्मा का वैभव-समवसरण की ऋद्धि अद्भुत होती है न? कौन - सी कमी होती हैं परमात्मा में? संसार में उनसे बढ़कर कौन ज्यादा पुण्यशाली होता है ?
भूल अपनी ही है, परमात्मा को जानने का प्रयत्न ही नहीं किया । परमात्मसृष्टि - भावालोक में प्रवेश ही नहीं किया । हम संसार में ही उलझते रहे । वैषयिक सुखों को खोजते रहे और जो वैषयिक सुख मिले, उनमें रसलीन होते रहे। विषय-विवशता और कषाय-परवशता ने हमारी आध्यात्मिक हत्या कर डाली है । हम कैसे परमात्मा से प्रीति करेंगे ?
परमात्मा से वह मनुष्य प्रीति कर सकता है कि जिसकी इन्द्रियाँ कुछ उपशान्त हुई हो, जिसका मन कुछ प्रशान्त हुआ हो । तन-मन का उन्माद कुछ कम हुआ हो । स्थिर, धीर और वीर पुरुष की परमात्मा से प्रीति बाँध सकते हैं। जो अस्थिर, अधीर और कायर पुरुष होते हैं, वे प्रीति नहीं बाँध सकते हैं। इसलिए कहता हूँ कि इन्द्रियों को व मन को कुछ उपशान्त तो करना ही पड़ेगा। मन कुछ उपशान्त होगा तो ही, परमात्मा के मन्दिर जाने के लिए घर से निकलोगे तभी से परमात्मा के विचार दिमाग में मन्दिर का शिखर देखते ही 'नमो जिणाणं' आपके मस्तक झुक जायेगा ।
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शुरू हो जायेंगे। दूर से मुँह से निकल जायेगा ।
सभा में से : परमात्मपूजन के लिए विचारशुद्धि के साथ देहशुद्धि और वस्त्रशुद्धि भी होनी चाहिए न ?
महाराजश्री : अवश्य, देहशुद्धि और वस्त्रशुद्धि होनी ही चाहिए। जिस देह से परमात्मा की पावन मूर्ति को स्पर्श करना है, वह देह शुद्ध होनी ही चाहिए । देह वस्त्ररहित नहीं रह सकती, इसलिए शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए। परमात्मपूजन के लिए अलग ही वस्त्र रखने चाहिए। उन वस्त्रों को दूसरे किसी भी कार्य में नहीं पहनना चाहिए ।