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प्रवचन-६८
२१९ चाहिए। यानी आश्रित लोगों की वजह से आपको इतनी ज्यादा चिन्ता नहीं होनी चाहिए कि आपकी बुद्धि कुंठित हो जाय, आपका ज्ञान विस्मृत हो जाय | हाँ, ज्यादा चिन्ताएँ करने से, ज्यादा माथापच्ची करने से बुद्धि चंचल, अस्थिर और कुंठित हो जाती है। आश्रित लोग यदि सही रास्ते पर चलने को तैयार नहीं हों, गलत काम छोड़ने को तैयार नहीं हों, उनके गलत कार्यों से आपकी अपकीर्ति होती हो, आपका अपयश होता हो तो आपको सोचना ही चाहिए | आपको अपना स्वमान नहीं खोना चाहिए। ___ आश्रितों से संबंध तोड़ना पड़ेगा | उनसे किसी प्रकार का संबंध नहीं रखने का । उनको मान-सम्मान नहीं देने का । है न इतनी तैयारी? यदि गलत धन्धा करके लड़के ने दो-चार लाख रुपये कमा लिये....शराब पीता है, अंडे खाता है, दूसरी महिलाओं से शरीरसंबंध रखता है....तो आप क्या करेंगे? हृदय में करुणा को बनाये रखना : ___ सभा में से : इस काल में श्रीमन्तों की अपकीर्ति नहीं होती है। श्रीमन्त मनुष्य को सभी पाप करने की दुनिया ‘परमिशन' देती है। ___ महाराजश्री : लड़का श्रीमन्त बन जाने पर वह पिता का आश्रित ही नहीं रहेगा न? स्वतंत्र हो जायेगा? फिर माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं रहती है। माता-पिता को अनाचारी श्रीमन्त पुत्र की भी परवाह नहीं करनी चाहिए | पुत्र के रुपयों से प्रभावित नहीं होना चाहिए | उनको अपने ज्ञान और स्वमान की रक्षा करनी चाहिए | आश्रित अनाचारी, दुराचारी, स्वच्छंदी बन जाय....उसके सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती हो....तब उससे संबंध विच्छेद कर ही देना चाहिए। हृदय में रोष नहीं रखना, भावदया रखने की। 'क्या होगा उस बेचारे का परलोक में? इस भव में तो दुःखी हो ही रहा है....परलोक में भी दुःखी होगा।' ___ परिवार के प्रति कितने व्यापक कर्तव्य निभाने के होते हैं? ग्रन्थकार और टीकाकार आचार्यों ने कितनी सुन्दर और सुव्यवस्थित जीवनपद्धति बतायी है! आप लोग गंभीरता से सोचे-समझें तो यह जीवनपद्धति अपना सकते हो। अपनी-अपनी जिम्मेदारी को समझते चलो। आश्रितों की उपेक्षा मत करें। भौतिक-धार्मिक और आध्यामिक दृष्टि से आश्रितों का खयाल करें।
आज बस, इतना ही।
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