Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 228
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क पर प्रवचन-६९ २२० । पूजा करने से पहले देव, अतिथि और दीनजनों की पहचान करना जरूरी है। पहचान करके पूजा करने से भावों में प्रगाढ़ता आती है। जहाँ पर प्रेम की शहनाइयाँ बज रही हों उस दिल को परमात्मा में जोड़ना नहीं पड़ता....वह तो परमात्मा के साथ जुड़ा हुआ ही रहता है। •मन्दिर में प्रवेश करने से पूर्व सांसारिक विचार-व्यवहार और वाणी को बाहर ही छोड़ दो। पूजा करनेवालों को पूजा का क्रम सीख लेना चाहिए। पूजा करने में विवेक का पूरा खयाल रखना है। अष्टप्रकारी पूजा में प्रत्येक पूजा के पीछे कुछ लक्ष्य है, आदर्श है....उन रहस्यों को समझने से ही पूजा का अपूर्व आनन्द 5 प्राप्त हो सकता है। स्वस्तिक चार गति का प्रतीक है। इससे ऊपर उठने के लिए - ज्ञान-दर्शन-चारित्र्य का सहारा लेना है और सिद्धशिला पर पहुँचकर आत्मस्वरूप में लीन हो जाना है। ' प्रवचन : ६९ महान् श्रुतधर, पूज्य आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए उन्नीसवाँ गृहस्थ धर्म बताते हैं : देव-अतिथि और दीनजनों की सेवा।। जिस प्रकार स्नेही, मित्र, स्वजन परिजन वगैरह की उचित आवभगत करते हैं उस प्रकार देव-अतिथि और दीनजनों की भी उचित सेवा करनी है। सर्वप्रथम आपको इन देव-अतिथि-दीनजनों की यथार्थ पहचान होनी चाहिए | बाद में उनकी सेवा क्यों करनी चाहिए, कैसे करनी चाहिए....उसका ज्ञान होना चाहिए। देव का परिचय : संस्कृत भाषा में 'दिव' धातु है, उसका अर्थ होता है स्तुति करना । भक्तिभरपूर हृदय से इन्द्र वगैरह जिनकी स्तुति करते हैं, स्तवना करते हैं वे 'देव' कहलाते हैं। नहीं होता है उनको कोई क्लेश या संक्लेश, नहीं होते हैं For Private And Personal Use Only

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