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प्रवचन-६८
२१० करना पड़ता है, तो भी करना उचित बता दिया है। पारिवारिक जिम्मेदारियाँ निभानी बहुत ही आवश्यक होती हैं। श्रीमन्तों का कर्तव्य : ___ सभा में से : परिवार का मुख्य व्यक्ति असाध्य व्याधि से ग्रस्त हो जाय और घर में दूसरा कोई धनोपार्जन करनेवाला न हो तो क्या किया जाय? ___ महाराजश्री : ऐसी परिस्थिति में, जो सुखी स्नेही हो, मित्र हो या साधर्मिक हो, उनका परम कर्तव्य बन जाता है उस परिवार का पालन करने का। संपत्तिशाली धनवान् लोगों का कर्तव्य होता है ऐसे संकट में फँसे हुए परिवारों को संभालने का। एक-एक श्रीमन्त यदि ऐसे एक-एक परिवार को सम्हाल ले तो प्रश्न हल हो जाय । ___ सभा में से : सभी जीव अपने-अपने कर्म लेकर जन्म लेते हैं, उनको उनके कर्मों के भरोसे छोड़ दिया जाय तो? __ महाराजश्री : यदि आपको इस प्रकार आपके कर्मों के भरोसे छोड़ दिया जाय तो आपको क्या होगा? जब आप व्याधिग्रस्त हो, आपत्तिग्रस्त हो, बेसहारा हो, उस समय आपके स्नेही, मित्र और स्वजन आपको छोड़ दें यह सोचकर कि 'उनके पापकर्मों का उदय है, भोगने दो उन कर्मों को!' तो आपके मन में क्या होगा? दुःख होगा न? व्याधिग्रस्त और आपत्तिग्रस्त जीवों को उनके कर्मों के भरोसे छोड़ने में करता है, निर्दयता है। कर्तव्यपालन नहीं करना है और अपने आपको 'तत्त्वज्ञानी' बताना है, ऐसे लोग ही ऐसा कुतर्क कर सकते हैं। व्यक्तिगत स्वार्थों में लिपटे हुए लोग दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करेंगे? जिनको आप अपने स्वजन मानते हो, जिनको आप अपना मित्र मानते हो, उनके प्रति आपके कुछ निश्चित कर्तव्य होते ही हैं। पहला कर्तव्य है उनका यथोचित पालन-पोषण करना । परिवार के प्रति इतना ध्यान तो रखना ही :
परिवार के प्रति दुर्लक्ष्य नहीं करना चाहिए। कितनी बातों पर लक्ष देना चाहिए - वह बताता हूँ :
१. परिवार में सबको समुचित भोजन मिलता है या नहीं? समय पर सभी भोजन करते हैं या नहीं? भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक रहता है या नहीं? प्रकृतिविरुद्ध भोजन तो नहीं होता है न?
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