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प्रवचन-६६
१९७ महाराजश्री : तो मौन रहना, परन्तु झगड़ा नहीं करना। बलात्कार से माता-पिता को धर्म नहीं कराया जाता है। यदि माता-पिता धर्माराधना करना चाहते हों तो उनकी इच्छा पूर्ण करना ।
दो बातें हैं : १. माता-पिता संतानों के प्रति कर्तव्यों का पालन करें। २. संतानें माता-पिता के प्रति कर्तव्यों का पालन करें।
दोनों पक्षों में वात्सल्य, स्नेह, भक्ति, कृतज्ञता और प्रत्युपकार के उच्चतम भाव होने चाहिए। द्वेष, धिक्कार, अविनय, औद्धत्य और अनादर जैसे दोष नहीं होने चाहिए।
इस प्रकार माता-पिता के पूजन के विषय में विस्तृत विवेचना की है। यह सोलहवाँ सामान्य धर्म असाधारण धर्म है। विशिष्ट धर्म है, यह मत भूलना। सभी संतानें मातृपूजक बनें, यही शुभेच्छा ।
आज बस, इतना ही।
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