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प्रवचन-६६
१९५ है। विद्यालयों का वातावरण दूषित हो गया है। छात्रों में अनुशासन नहीं रहा है। अध्ययन का रस कम होता जा रहा है। आज की शिक्षा : न तो आत्मलक्षी, न व्यवहारलक्षी :
शिक्षा आत्मलक्षी तो नहीं, व्यवसायलक्षी भी नहीं रही है। इसलिए शिक्षित बेकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। परिस्थिति बिगड़ती जा रही है। नैतिक
और धार्मिक मूल्यों का नाश हो रहा है। अनैतिकता और पापाचार बढ़ते जा रहे हैं। इस परिस्थिति में से बचने के लिए जाग्रत माता-पिता को अपने संतानों को परमात्मभक्ति की ओर मोड़ना चाहिए। साधुपुरुषों के संपर्क में लाना चाहिए और नैतिक-धार्मिक ज्ञान देना चाहिए। यह काम भी माता-पिता तभी कर सकेंगे, जब वे स्वयं उबुद्ध होंगे। संतानों का हित उनके हृदय में बसा होगा। वे स्वयं नैतिक और धार्मिक मूल्यों का आदर करते होंगे। उनमें परलोक-दृष्टि होगी। ___संतानों को स्वजनों का परिचय कराना चाहिए | जो स्वजन हितकारी बातें करते हों, कल्याणकारी बातें करते हों....वैसे स्वजनों से परिचय करना चाहिए। हाँ, वे स्वजन व्यसनी नहीं होने चाहिए। पापाचारी नहीं होने चाहिए, इतनी सावधानी बरतनी होगी। जैसा संपर्क और संसर्ग होगा वैसे गुण-दोष आते हैं व्यक्ति के जीवन में | इसलिए संतानों की उत्तम पुरुषों के साथ मैत्री करानी चाहिए। सन्तानों के मित्रों के प्रति जाग्रत रहना :
व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में 'मैत्री' महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। आपका लड़का कैसे लड़कों के साथ मैत्री रखता है-आप लोग ध्यान रखते हो? आपकी लड़की कैसी लड़कियों के साथ मैत्री रखती है, आप जानते हो? ध्यान रखते हो? आप यदि इस गंभीर बात का भी ख्याल नहीं रखोगे तो आपकी संतानें मातृपूजक और पितृपूजक कभी नहीं बन सकतीं।
सभा में से : जब हम लड़के-लड़कियों को कहते हैं कि 'तुम ऐसे-ऐसे लड़कों से, लड़कियों से मैत्री नहीं रखो।' तब वे कहते हैं : 'किससे मैत्री रखनी और किससे नहीं रखनी, वह हम समझते हैं। आपको हमारी व्यक्तिगत बातों में नहीं आना चाहिए....'
महाराजश्री : ऐसा उत्तर तो जब लड़के या लड़कियाँ बड़े होते हैं तब देते
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