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प्रवचन-६२
१५० अनुमति प्रदान कर दी थी। संतानों पर पति का अधिकार मान्य कर लिया था। रूद्रसोमा ने। परिवार का वातावरण उसने प्रसन्नतापूर्ण बना रखा था।
एक बात मत भूलना कि, इस परिवार में गृहस्थोचित सामान्य धर्मों के पालन में पति-पत्नी दोनों सामान्य रूप से सहमत थे। सदाचारों के पालन में दोनों समान रूप से आग्रही थे। दोनों लड़कों को सदाचारों की शिक्षा सहज रूप से मिलती थी। माता और पिता-दोनों, बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यपालन में सजग थे। वे दोनों मानते थे कि 'बच्चों को जन्म देने के बाद यदि हम उनके तन-मन की और आत्मा की चिंता नहीं करते हैं, खयाल नहीं रखते हैं तो हम कसाई से भी ज्यादा क्रूर हैं।' बच्चों के, संतानों के पहले 'गुरु' तो माता-पिता होते हैं। जिस बच्चे को माता गुरु मिले, पिता गुरु मिले, उस बच्चे का सुन्दर चरित्रनिर्माण होता है। माँ-बाप स्वयं सदाचारी हैं सही? : __ आप लोग आपकी संतानों के गुरु बने हो न? संतानों को सदाचारों की शिक्षा देते हो न? आप स्वयं सदाचारों का पालन करते हो न?
सभा में से : हमारी तो बात ही मत करें, दुराचारों से भरे हुए हम, संतानों को कैसे सदाचारों की बात भी कर सकते हैं? __महाराजश्री : तो आप संतानों के लिए पूजनीय नहीं बन सकते । सम्माननीय नहीं बन सकते। आपके लड़के-लड़कियाँ आपके प्रति मान-सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे। आपकी आज्ञाओं का पालन नहीं करेंगे। आप उनको उन्मार्ग पर जाते नहीं रोक सकेंगे। इसका क्या परिणाम आता है, यह कभी सोचा है? आप संतानों के प्रति अपने कर्तव्यों को नहीं निभायेंगे तो संतानें आपके प्रति अपने कर्तव्य कैसे निभायेंगे? माता-पिता की पूजा, यह सामान्य धर्म सन्तानों के लिए बताया गया है, परन्तु माता-पिता में पूज्यता ही न हों तो वे माता-पिता की सेवा कैसे करेंगे? जन्म देने मात्र से माता-पिता पूज्य नहीं बन जाते । पूज्य वे बनते हैं कि जो गुणवान् होते हैं और उपकारी होते हैं। ___ अपनी आर्य संस्कृति में पूज्य-पूजक का पवित्र संबंध बताया गया है, वह इसी दृष्टि से बताया गया है। परमात्मा तीर्थंकरदेव इसलिए पूजनीय हैं चूंकि वे अनन्त गुणों के निधान हैं और उन्होंने इस जीवसृष्टि पर अनन्त उपकार किये हैं! साधुपुरुष भी इसी हेतु से पूजनीय हैं, क्योंकि वे अनेक विशिष्ट गुणों से अलंकृत होते हैं और जीवसृष्टि पर उपकार करते हुए जीवन जीते हैं।
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