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प्रवचन-६३
१५८ कहा : 'मुझे बत्तीस चाहिए! चूंकि मेरी ३२ पुत्रवधुएँ हैं! फिर भी तुम १६ रत्नकंबल दे दो, अभी ही आपको १६ लाख रूपये दे देती हूँ!' । ____ व्यापारी भद्रामाता की बात सुनकर स्तब्ध-सा रह गया! जिस देश का राजा एक रत्नकंबल भी नहीं खरीद सका, उस देश की एक औरत एक साथ १६ रत्नकंबल खरीद रही है....रोकड़ रुपयों से! आश्चर्य....बहुत बड़ा आश्चर्य! भद्रामाता ने १६ लाख तुरंत दिलवा दिये, व्यापारी को बिदा किया और अपनी ३२ पुत्रवधुओं को बुला लिया अपने पास | १६ रत्नकंबलों के ३२ टुकड़े किये और सबको एक-एक टुकड़ा दे दिया। __ मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ : भद्रामाता ने शालिभद्र को रत्नकंबल क्यों नहीं दी? स्वयं के लिए भद्रामाता ने एक भी रत्नकंबल क्यों नहीं रख ली? एक टुकड़ा भी क्यों नहीं लिया? आपने यह कहानी तो सुनी होगी न पहले? कभी इस प्रसंग पर शान्त चित्त से विचार किया है? आज के माता-पिता की सबसे बड़ी गलती :
सभा में से : हम लोग तो सिर्फ सुनते ही हैं, चिंतन करते ही नहीं!
महाराजश्री : बहुत बड़ी भूल है आपकी। इस भूल को शीघ्र सुधार लेनी चाहिए | धर्मोपदेश सुनो और सोचो। सोचोगे तो मूल्यवान विचार-रत्न मिलेंगे। जीवन में अति उपयोगी बातें मिलेंगी।
जब ३२ पुत्रवधुओं ने जाना होगा कि 'हमारी सास ने अपने लिए पूरी रत्नकंबल तो नहीं, आधी भी नहीं ली है और १६ कंबलों के ३२ टुकड़े कर हम ३२ बहुओं को ही दे दिये हैं....' तब उन ३२ बहुओं के हृदय में भद्रामाता के प्रति कितना स्नेह उमड़ा होगा? मनुष्य का यह स्वभाव है.... निःस्वार्थ उदार व्यक्ति के प्रति स्नेह हो ही जाता है। सास के प्रति पुत्रवधुओं का स्नेह होना नितान्त आवश्यक होता है। पुत्रवधू यदि संतुष्ट और प्रसन्नचित्त रहेगी तो पति को सुखशान्ति देगी ही। माता-पिता भी यही चाहते हैं कि पुत्र सुखी हो। पुत्र की शादी करते हो तो पुत्र को सुखी करने के लिए ही करते हो न? पुत्रवधू प्रसन्नचित्त होगी तभी आपके पुत्र को सुखी कर सकती है न? इस दृष्टि से पुत्रवधू को प्रसन्नचित्त रखने का प्रयास करते हो न? दूसरी बात : आपकी पुत्रवधू आपके पुत्र को सुख देने ले लिए सदैव जाग्रत रहे....तो आप खुश होंगे न?
सभा में से : नाराज होते हैं! पुत्र और पुत्रवधू का आपस में घनिष्ट स्नेह होता है तो माता-पिता नाराज होते हैं!
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