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प्रवचन- ६५
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पत्नी थी। तीसरी बात, आर्यरक्षित के पास जाकर, विशाल मुनिवृन्द के बीच हृदय की बातें वह नहीं कर सकती। चौथी बात, उसके मन में तो सारे परिवार को मोक्षमार्ग का आराधक बनाने की भावना थी । मात्र मोहवशता नहीं थी रुद्रसोमा की । मात्र पुत्र का मुखदर्शन करके ही वह संतुष्ट होनेवाली श्राविका नहीं थी। यदि आर्यरक्षित दशपुर में आयेगा तो उसके पिताजी भी सद्धर्म की प्राप्ति कर सकते हैं। चूँकि पिता के मन में पुत्र के प्रति प्रेम है । वह प्रेम उनके जीवन-परिवर्तन में हेतु बन सकता है। ऐसा कुछ उसके मन में होना चाहिए। उसने फल्गुरक्षित के साथ जो संदेश भेजा है, उस संदेश की भाषा में से ऐसा कुछ फलित होता है। कितना ज्ञानगर्भित .... .. सारभूत संदेश भेजा है उस श्राविका माता ने! अद्भुत है वह संदेश | आप भी सुनें वह संदेश । श्राविका माँ का प्रेरक संदेश :
'हे वत्स, तूने जननी का मोह तोड़ दिया है, बन्धुजनों का स्नेह भी तोड़ दिया है.... परन्तु वात्सल्य और करुणा तो होनी चाहिए न ? जिनेन्द्र परमात्मा ने वात्सल्य और करुणा को तो मान्यता प्रदान की है। श्री महावीर प्रभु जब माता के उदर में थे तब से माता के प्रति भक्तिवाले थे । इसलिए तुझे कहती हूँ कि तू शीघ्र यहाँ आ और मुझे तेरा मुखदर्शन देकर आनन्दित कर । तेरे विरह से मेरा मन कितना व्याकुल होगा, उसका विचार करना ।
और एक बात कहती हूँ : तू यहाँ आयेगा तो जो मार्ग तूने ग्रहण किया है वह मार्ग.... वह चारित्र्यमार्ग मैं भी ग्रहण करूँगी! तेरे पिताजी और तेरे भाईबहन भी वही मार्ग ग्रहण करेंगे ।
यदि तेरे हृदय में मेरे प्रति स्नेह न हो, न रहा हो, तू पूर्ण विरक्त बन गया हो....तो भी उपकारबुद्धि से आना । इस संसार - सागर से मेरा उद्धार करने के लिए आना। एक बार तू आ जा यहाँ.... तेरा दर्शन करके मैं कृतार्थ बन जाऊँगी ।
रूद्रसोमा ने अपने छोटे पुत्र फल्गुरक्षित को गद्गद् स्वर से यह संदेश दिया। फल्गुरक्षित ने उज्जयिनी की ओर प्रयाण कर दिया ।
रुद्रसोमा का भव्य सन्देश सुना न ? हृदय को हिला दे.... वैसा था यह सन्देश। सन्देश में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं रुद्रसोमा ने। साधुजीवन का स्पर्श करनेवाली पहली बात है। संसार का त्याग कर, साधुजीवन को स्वीकार करनेवाला साधु विरक्त होता है। माता-पिता और भाई-बहन आदि स्वजनों के
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