Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 196
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६६ ____१८८ करनेवालों के मन में प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। वहाँ होना चाहिए कर्तव्यपालन का भाव । वहाँ होनी चाहिए जिनाज्ञापालन की भावना। ___ हम पर जिन-जिनका छोटा-बड़ा उपकार हों, हमें भूलने नहीं चाहिए उन उपकारीजनों को और उनके उपकारों को। कभी ऐसा नहीं सोचना कि 'मातापिता ने हम पर कौन-सा उपकार कर दिया है? उन्होंने जो कुछ हमारे लिए किया वह उनका कर्तव्य था और किया.... हमने तो उनको नहीं कहा था कि हमारे लिए ऐसा-ऐसा करना....|' यदि संतानें ऐसा सोचेंगी तो बड़ा अनर्थ होगा। हमारे प्रति कोई कर्तव्य-भावना से उपकार करता है, उसका भी बड़ा मूल्य है। हमारे मन में उसका मूल्यांकन होना चाहिए। संभव है कि माता-पिता संतानों की सभी इच्छाएँ पूर्ण नहीं कर सकें। उस समय सन्तानों को मातापिता के संयोग-परिस्थिति का विचार करना चाहिए | उनके प्रति रोष-आक्रोश नहीं करना चाहिए। अविनय नहीं करना चाहिए। कटु शब्द के प्रहार नहीं करने चाहिए। उपकारियों के दिल को तोड़ने का पाप बड़ा पाप है। सन्तानों को अपने कर्तव्यों के पालन में जाग्रत रहना चाहिए। श्री आर्यरक्षित मुनि हैं, श्रमण हैं, विरक्त महात्मा हैं, परन्तु माता का संदेश सुनने के बाद उनके हृदय में माता के उपकारों की स्मृति उमड़ने लगी है। हालाँकि वे अध्ययन करते हैं। दिन-रात अप्रमत्त-भाव से अध्ययन करते हैं, परन्तु बार-बार माता के संदेश के शब्द उनके हृदय को आंदोलित करते हैं। दसवें 'पूर्व' का अध्ययन चालू है | वे यह चाहते हैं कि 'दसवें' पूर्व का अध्ययन पूरा करके दशपुर चला जाऊँ।' परन्तु महासागर जैसा है दसवाँ पूर्व। वे अधीर बने । श्री वज्रस्वामी के पास दूसरी बार गये और विनय से पूछा : 'गुरूदेव, दसवाँ पूर्व अब कितना शेष है?' श्री वज्रस्वामी ने कहा : 'आर्यरक्षित, तुम तीव्र गति से अध्ययन करते हो, फिर भी समय तो लगेगा ही, इसलिए दूसरा कोई विचार किये बिना अध्ययन करते रहो....।' आर्यरक्षित ने वज्रस्वामी को माता के संदेश की बात नहीं कही थी। वे उचित नहीं समझे होंगे ऐसी बात करने में | वे पुनः अध्ययन में लग गये। दसवाँ पूर्व आधा हो गया.... अब आर्यरक्षित एकदम अधीर बन गये । उनको बार-बार माता की पुकार सुनाई देने लगी। वे तीसरी बार श्री वज्रस्वामी के पास गये और पूछा : 'गुरुदेव, अब कितना अध्ययन शेष रहा है?' श्री वज्रस्वामी ने आर्यरक्षित के सामने देखा । मुख पर बेचैनी थी, अधीरता थी....भीतर में कुछ अशान्ति थी। उन्होंने ध्यान लगाया। श्रुतोपयोग में देखा....'ओह, यह दसवें पूर्व का पूर्ण For Private And Personal Use Only

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