________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
प्रवचन- ६५
www.kobatirth.org
एक बार प्रेम और शांति से पिता को निवृत्त होने के लिए समझाना | माता-पिता को आंतरिक इच्छा यदि निवृत्त होने की होगी, आत्मकल्याण को प्रवृत्ति करने को होगी तो तुम्हारी बात वे जरूर मान लेंगे। तुम्हारा कर्तव्य पूरा होगा । उम्र को भी एक मजबूरी होती है। बुढ़ापे या बीमारी से मजबूर माता-पिता के प्रति तिरस्कार करना कितना उचित है? संगत है? मानो कि दुर्भाग्य से तुम्हारा स्वयं का स्वभाव बिगड़ गया तो तुम क्या करोगे? माता-पिता और गुरु के क्रोधीगुस्सैल स्वभाव को समता से सहन करना, यह एक सबसे बड़ी तपश्चर्या है!
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
● पूज्यों के प्रति अपने कर्तव्यों को भुलाकर कौन सुखी हो पाया है? किस को शांति मिली है? अपने-अपने कर्तव्यों के पालन किया जाये तो काफी दुःख दूर हो सकते हैं।
● गुणों को दृढ़ भूमिका पर धर्म का पालन होता हो वहाँ पर वैर-विरोध या संघर्ष को तनिक भी अवकाश नहीं है!
जहाँ स्नेह न हो, जहाँ राग न हो.... वहाँ पर भी उपकार तो हो हो सकता है। भगवान मुनिसुव्रतस्वामी ने अश्व को प्रतिबोधित करने के लिए रात के समय भी विहार किया था न?
प्रवचन: ६५
१७५
महान् श्रुतधर, परमोपकारी आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी ने स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में सर्वप्रथम गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का विवेचन किया है। गृहस्थ के जीवन में यदि इन सामान्य धर्मों का यथोचित पालन हो तो ही वह विशिष्ट धर्मों की आराधना करने के लिए योग्य बनता है ।
For Private And Personal Use Only
माता-पिता की पूजा सोलहवाँ सामान्य धर्म है। माता-पिता के जीवन में यदि पहले बताये वे १५ सामान्य धर्मों का पालन होगा तो इस धर्म का पालन सन्तानों के जीवन में संभवित है। पूजा पूज्य की होती है। पूज्य वे बनते हैं कि जो गुणसमृद्ध होते हैं। माता-पिता गुणसमृद्ध होंगे तो ही वे पूज्य बनेंगे । आर्यरक्षित के माता-पिता गुणसमृद्ध थे इसलिए वे सन्तानों के लिए पूज्य बने थे और आर्यरक्षित माता-पिता एवं गुरु के पूजक बने थे इसलिए वे परम पूज्य बने! पूज्यों की पूजा पूजक को पूज्य बनाती है ।