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प्रवचन-६४ कर्कश होती है....शब्द तीर जैसे नुकीले होते हैं। शब्दों के कुछ नमूने देखें -
० तुम नास्तिक हो.... ० तुम बिगड़ गये हो.. ० तुम नर्क में जाओगे.... ० तुम बुद्धिहीन हो.... ० तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हुई है.... ० मेरे घर में ऐसा नहीं चलेगा.... सभा में से : इससे भी ज्यादा उग्र शब्दप्रयोग होते हैं।
महाराजश्री : होते हैं, मैं जानता हूँ.... परन्तु बोल नहीं सकता। ऐसे दुर्व्यवहार से क्या कोई सुधरता है? धर्मप्राप्ति करता है? सदाचारों का पालन करता है? नहीं, ज्यादा बिगड़ता है, अधर्म की ओर अग्रसर होता है, दुराचारों में ज्यादा फँसता है। इसलिए कहता हूँ कि माताएँ रुद्रसोमा जैसी प्रियभाषिणी बनें। प्रियभाषिणी माता संतानों के हृदय में अपना स्थान....गौरवपूर्ण स्थान बनाये रखती हैं। इन्द्रियों के प्रचंड आवेग और कषायों की तीव्र परवशता प्रायः माता-पिता एवं धर्मगुरु की हितकारी बातों का पालन नहीं करने देती है, परन्तु यदि माता-पिता और धर्मगुरु सौम्य होंगे और प्रियभाषी होंगे तो संतानों के हृदय में उनके प्रति स्नेह और श्रद्धा तो अवश्य बनी रहेगी। मैंने ऐसे तरुण एवं युवा लड़कों को देखे हैं, मैं पहचानता हूँ उनको, उनके हृदय में माता-पिता के प्रति प्रेम है, धर्मगुरू के प्रति श्रद्धा है....। आज भले उनके जीवन में सदाचारों का पालन कम हो, परन्तु पूज्यों के प्रति जो प्रेम है उनके हृदय में, वह प्रेम एक दिन उनको पूर्ण सदाचारी बना देगा! रुद्रसोमा पूजनीय माता बनी क्योंकि....
आर्यरक्षित बड़े पंडित हो गये....राजमान्य पंडित हो गये....तब तक माता रुद्रसोमा ने उनको जैनाचार्य के पास जाने की और उनसे ज्ञान प्राप्त करने की बात नहीं की थी। जबकि वह परम श्रमणोपासिका थी। कितना धैर्य रखा है रुद्रसोमा ने? कभी भी अप्रिय-कठोर शब्दों का प्रयोग नहीं किया है रुद्रसोमा ने! तभी तो वह पूजनीया माता बनी थी। परम श्रद्धेया माता बनी थी। आर्यरक्षित को कहा : 'तू जैनाचार्य तोसलीपुत्र के पास जा और उनके पास 'दृष्टिवाद' का अध्ययन कर.... इससे मेरी कुक्षी शीतल बनेगी।' आर्यरक्षित ने
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