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प्रवचन- ६१
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दुराचारों का फैलाव बढ़ता ही जा रहा है। सदाचारों की घोर उपेक्षा हो रही है।
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ऐसी निराशापूर्ण परिस्थिति में भी, यदि आपका दृढ़ निर्णय होगा कि 'मुझे इन सामान्य धर्मों का पालन कर, मोक्षमार्ग के आराधक की योग्यता - पात्रता पाना है,' तो आप इन सामान्य धर्मों का पालन अवश्य कर सकेंगे। सदाचारी सत्पुरुषों के संपर्क में आप रह सकेंगे। दुर्जनों से दूर रह सकेंगे।
स्वास्थ्य के लिए-शारीरिक स्वास्थ्य के लिए मनुष्य क्या नहीं करता है ? क्या नहीं छोड़ता है? कौन से डॉक्टर के पास नहीं जाता है ? तो आत्मकल्याण के लिए क्या आप दुर्जनों का संग नहीं छोड़ सकते ? सज्जनों का संग नहीं कर सकते? चाहिए आत्मकल्याण की तीव्र इच्छा ! चाहिए आत्मविशुद्धि की प्रबल भावना। चाहिए पारलौकिक दुखों का भय!
जीवनयात्रा में यह पंद्रहवाँ सामान्य धर्म अत्यंत आवश्यक धर्म है । मोक्षमार्ग की आराधना में तो यह धर्म अनिवार्य रूप से आवश्यक है। इस धर्म का आज संक्षिप्त विवेचन किया है।
आज बस, इतना ही
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