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प्रवचन-५८
१०९ कि 'यह एक क्लब है, वहाँ लोग जुआ खेलने आते हैं। रातभर जुआ खेलते रहते हैं।' बाद में तो एक जुआरी ने ही मुझे बताया था कि कहाँ-कहाँ और कैसी-कैसी ऐसी क्लबें चलती हैं। पुलिस जानती है परन्तु पुलिस को 'हपता' मिलता रहता है। पुलिस अधिकारियों को भी 'दक्षिणा' मिलती रहती है....इसलिए जुआरी पकड़े नहीं जाते। कभी पकड़े जाते हैं तो तत्काल छूट जाते हैं। पापाचार की रक्षा करनेवाला भ्रष्टाचार उतना ही पनपा है न? ट्रस्टी लोग कान खोलकर सुनें तो अच्छा है : __ तीर्थधामों की धर्मशालाओं में भी जुआ खेलते हुए लोग पकड़े गये हैं! तीर्थधामों की धर्मशालाओं में निर्भयता से जुआ खेला जा सकता है न? कमरा या ब्लॉक बंद करके बैठ जाते हैं जुआ खेलने| धर्मशाला के मुनीम को 'दक्षिणा' मिल जाती है। अथवा 'बड़े लोगों को कौन रोके?' मुनीम यदि रोकने जाय तो उस बेचारे की नौकरी ही चली जाय न?
तीर्थस्थानों की धर्मशालाओं का दुरुपयोग-पापाचारों के सेवन से पाप बढ़ता ही जा रहा हैं। जितनी सुविधाएँ ज्यादा, उतना पापाचारों का सेवन ज्यादा!
यदि आप लोगों में से कोई तीर्थस्थानों के 'ट्रस्टी' हों, तो कान खोलकर सुन लेना कि आप बहुत बड़े पापाचारों में निमित्त बनते हो।
सभा में से : तो क्या हमें तीर्थस्थान में ट्रस्टी नहीं बनना चाहिए?
महाराजश्री : तभी बन सकते हैं 'ट्रस्टी', जब आप में शक्ति हो, तीर्थस्थानों की पवित्रता की रक्षा करने की | मात्र कीर्ति कमाने के लिए, मान-सम्मान पाने के लिए, ज्यादा सुविधाएँ पाने के लिए ट्रस्टी बनते हों तो मर जाओगे | अनन्त पापकर्म उपार्जन करोगे। तीर्थस्थानों की व्यवस्था करनेवाले जाग्रत चाहिए | बार-बार तीर्थ में जाकर वहाँ की परिस्थिति जाननी चाहिए। तीर्थ के नौकरों की हलचल देखनी चाहिए। धर्मशालाओं में जाकर यात्रिकों की गतिविधि देखनी चाहिए। कोई भी पापाचार वहाँ नहीं चले, उसके लिए कड़ा प्रबंध रखना चाहिए। तीर्थों की पवित्रता को बनाये रखो :
सभा में से : ऐसा करें तो यात्रियों से झगड़ा हो जाय । महाराजश्री : हो जाने दो झगड़ा | पापाचारों का सेवन करनेवाले यात्रिक
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