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प्रवचन-६१ भी इस लक्ष्य से करें। पूजा-पाठ, ज्ञान-ध्यान, तप-त्याग....इसी लक्ष्य से करते रहें। 'मुझे मेरे दोष मिटाने हैं!' ऐसा दृढ़ संकल्प करें। ___ हालाँकि अनादिकालीन दोष सरलता से दूर नहीं होते, उन्हें दूर करने के लिए सतत और सख्त प्रयत्न करना होगा। दीर्घकालीन प्रयत्न करना होगा। सामान्य और अल्पकालीन प्रयत्न से दृढ़ीभूत दोष दूर नहीं होते हैं। अनादिकालीन न हों, मात्र इस जीवन के दोष हों, तो भी दीर्घकालीन प्रयत्न से वे दोष दूर हो सकते हैं। जैसे, किसी को अभक्ष्य खाने की आदत पड़ गई है। उसको खयाल भी आ गया हो कि 'यह दोष बहुत खराब है, मुझे अभक्ष्य नहीं खाना चाहिए,' परन्तु वह कुछ दिनों के लिए या कुछ महीनों के लिए अभक्ष्य नहीं खाने की प्रतिज्ञा करता है, संभव है कि प्रतिज्ञा की मर्यादा पूर्ण होने पर पुनः अभक्ष्य खाने लग जायेगा! मात्र अभक्ष्य नहीं खाने की प्रतिज्ञा से वह दोष दूर नहीं होता! कुछ समय के लिए अभक्ष्य भक्षण की प्रवृत्ति बंद होगी परन्तु वृत्ति में परिवर्तन आएगा क्या? अभक्ष्य भक्षण की मनोवृत्ति बदलेगी क्या? अशुभ प्रवृत्ति का त्याग, अशुभ वृत्ति के नाश के लिए होना चाहिए। अभक्ष्य भक्षण का आकर्षण नष्ट हो जाना चाहिए, इसलिए : १. जो व्यक्ति अभक्ष्य खाता हो, उनका संसर्ग नहीं रखना चाहिए | २. अभक्ष्य भक्षण नहीं करने की प्रतिज्ञा सद्गुरु से लेनी चाहिए। ३. जहाँ अभक्ष्य भोजन बनता हो वहाँ जाना भी नहीं चाहिए। ४. अभक्ष्य भोजन की तारीफ नहीं सुननी चाहिए। ५. जहाँ अभक्ष्य भोजन होता है, वहाँ उपस्थित नहीं रहना चाहिए।
जब तक अभक्ष्य भोजन के प्रति मन में नफरत पैदा न हो तब तक इन नियमों का सख्त पालन करना चाहिए | इन नियमों का पालन नहीं करनेवाले, जो पहले अभक्ष्य भोजन नहीं करते थे, वे अभक्ष्य खाने लग गये हैं। अभक्ष्य खानेवालों से मित्रता हो गई, कुछ समय तो अभक्ष्य नहीं खाया, परन्तु मित्रों के आग्रह से, अनुनय से....अभक्ष्य खाना शुरू कर दिया! कई सदाचारी परिवारों के लड़के-लड़कियाँ कॉलेज में जाने के बाद, होस्टलों में रहने के बाद क्यों अभक्ष्य खाने लग गये? चूंकि कॉलेजों में और होस्टलों में वैसे दुराचारी लड़के-लड़कियों के संसर्ग होते हैं, संपर्क होते हैं, मित्रता होती है....बस, सदाचारी को दुराचारी का संसर्ग दुराचारी बना देता है।
दुराचारी लोग सदाचारों का उपहास करने लगे हैं। सदाचारों की निन्दा
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