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प्रवचन-५८ नहीं चाहिए हमें | वे यात्रिक ही नहीं होते। वे तो होते हैं आवारा लोग | अपने घर में, गाँव में पापाचारों का सेवन करें तो बदनाम होने का भय लगता है इसलिए तीर्थस्थानों में चले आते हैं। ऐसे लोगों को तो धर्मशाला में से बाहर ही निकाल देना चाहिए अथवा पुलिस को सुपुर्द कर देना चाहिए, यदि जुआ खेलते हुए या शराब पीते हुए 'रेड हेंडेड' पकड़े जायँ तो। यदि ऐसा कड़ा अनुशासन नहीं होगा तो तीर्थस्थानों की पवित्रता नष्ट हो जायेगी। तीर्थ तैरने का - भवसागर तैरने का स्थान नहीं रहेगा, डूबने का स्थान बन जायेगा।
एक तीर्थ में हमने स्वयं देखा था कि वहाँ के 'स्टाफ' के ही ज्यादातर लोग शराब पीते थे। अभक्ष्य खाते थे। मुनिम जैन नहीं था। ट्रस्टी तो वहाँ कोई था ही नहीं हाजर...शिकायत किसको करें? जिस पेढ़ी की व्यवस्था है [आज भी है] वह पेढ़ी ऐसी बातों पर ध्यान ही नहीं देती है! वह तो पैसे की ही व्यवस्था करती है न? पापाचार को जानो, समझो और उसका त्याग करो :
आज मुझे वर्णन करना है 'प्रसिद्ध देशाचारों के पालन' का, परंतु मैं वर्णन कर रहा हूँ प्रसिद्ध पापाचारों के त्याग का | चूँकि देश में कोई व्यापक सदाचार ही नहीं बचा है। सारे सदाचार इने-गिने लोगों में रह गये हैं। देश में व्यापक बने हुए पापाचारों को जान लो, समझ लो और उन पापाचारों से बच कर जीवन जियो। परिवार के लोगों को भी इन पापाचारों से बचाना हैं। लड़के और लड़कियों को बचाना पड़ेगा।
चौथा व्यापक पापाचार है नशे का | शराब के अलावा भी कई प्रकार के नशे होते हैं। गांजा, अफीम, चरस, भांग वगैरह द्रव्यों का सेवन काफी बढ़ गया है समाज में। इंजेक्शन के माध्यम से भी नशा करते हैं लोग! नशा करने का एक प्रबल कारण होता है व्यभिचार | व्यभिचारी लोग ही ज्यादातर नशा करते हैं । इन्द्रियों की उत्तेजना तभी होती है न? शराब से भी शतगुण ज्यादा नशीले पदार्थ इस्तेमाल किये जाते हैं। इससे मनुष्य का शरीर रोगी और अशक्त बनता जाता है। मानसिक रोग भी बढ़ते जाते हैं। स्वभाव उत्तेजनापूर्ण बन जाता है।
नशे में चकचूर रहनेवाले लोगों का पारिवारिक जीवन नष्ट होता है। परिवार उस से परेशान होता है। तन से, मन से और धन से बरबादी होती
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